Poetry By Kalindi Trivedi: कालिंदी जी की इस कविता में भगवान भोलेनाथ की भावपूर्ण कवितात्मक स्तुति को पढ़िए..
जाग – जाग शिव
रे कैसा है यह दावानल,
है कैसी भड़क उठी यह आग ?
है कैसा यह अरण्य रूदन,
किसने छेड़ा यह करुण राग ?
अट्टहास कर रही दानवता,
उत्पीड़ित शोषित मानवता।
है माताओं की गोद रिक्त,
बहनों की सूनी,होती मांग ।
है अनाचार कर रहा हास ,
हैं अत्याचारी करते विलास ।
मां- बहनों की लुट रही लाज,
लांछित होता उनका सुहाग ।
मानव,मानव का शत्रु बना,
विधना! यह कैसी विडम्बना ।
भ्रष्टाचार और अनाचार डसते ,
बन कर बहुमुखी नाग।
आतंक और आशंकाओं के
घिर-घिर आते मेघ सघन ।
जन -मानस होता उद्वेलित,
आशा का है बुझता चिराग।
गहराता आता अंधकार,
झंझा प्रकम्पित होता मन ।
हे प्रलंयकर खोलो त्रिनेत्र,
हे मौनव्रति दो समाधि त्याग।
रक्षक बन रहा आज भक्षक,
स्वार्थ परता बनी नाग तक्षक।
अब तो उठा निज पशु पतास्त्र,
अब जाग -जाग शिव,
अब तो जाग ।
(कालिंदी त्रिवेदी)