Cinema में आज बॉलीवुड के पहले डांसिंग स्टार शम्मी कपूर के बारे में पढ़िए जिनकी हार अचानक जीत में बदल गई..
शम्मी कपूर जब फ़िल्म इंडस्ट्री छोड़कर दार्जिलिंग में नौकरी करने जाने का विचार करने लगे थे तब उन्हें एक ऐसी फ़िल्म मिली जिसने उन्हें ना सिर्फ़ फ़िल्म इंडस्ट्री छोड़ने से बचाया, बल्कि स्टार भी बना दिया। वो फ़िल्म थी “तुमसा नहीं देखा”, जो साल 1957 में रिलीज़ हुई थी। बतौर डायरेक्टर ये नासिर हुसैन की भी पहली फ़िल्म थी। और नासिर हुसैन ने ही इस फ़िल्म की कहानी, स्क्रीनप्ले व डायलॉग्स भी लिखे थे। इससे पहले भी नासिर हुसैन कुछ फ़िल्मों की कहानी व डायलॉग्स लिख चुके थे।
“तुमसा नहीं देखा” फ़िल्म बनी थी फ़िल्मिस्तान के बैनर तले, जिसके मालिक हुआ करते थे तोलाराम जालान। शशधर मुखर्जी व अशोक कुमार भी फ़िल्मिस्तान में पार्टनर थे। शशधर मुखर्जी ने ही नासिर हुसैन को फ़िल्मिस्तान में बतौर लेखक काम दिया था। “तुमसा नहीं देखा” फ़िल्म को डायरेक्ट करने का मौका भी नासिर साहब को शशधर जी ने ही दिया था। शुरुआत में नासिर हुसैन चाहते थे कि “तुमसा नहीं देखा” फ़िल्म में देव आनंद काम करें। मगर देव आनंद दूसरी फ़िल्मों में व्यस्त थे तो वो “तुमसा नहीं देखा” के हीरो नहीं बन सके। तब इस फ़िल्म में शम्मी कपूर को लिया गया।
“तुमसा नहीं देखा” कामयाब हुई तो शम्मी कपूर के साथ-साथ नासिर हुसैन को भी बहुत फ़ायदा हुआ। 1957 की पांचवी सबसे सफ़ल फ़िल्म रही थी तुमसा नहीं देखा। मगर ये फ़िल्म जब बन रही थी तब नासिर हुसैन और तोलाराम जालान के बीच कुछ विवाद हो गए। उनमें सबसे प्रमुख विवाद था फ़िल्म की हीरोइन अमीता। नासिर हुसैन अमीता के काम से खुश नहीं थेे। मगर तोलाराम जालान की चहेती हुआ करती थी अमीता। अमीता को लेकर ही नासिर हुसैन और तोलाराम जालान के बीच कई दफ़ा बहस हुई। आखिरकार “तुमसा नहीं देखा” के बाद नासिर हुसैन ने फ़िल्मिस्तान छोड़ दिया।
ये वही समय था जब शशधर मुखर्जी व अशोक कुमार ने भी फ़िल्मिस्तान से अलग होकर फ़िल्मालय नाम से अपना एक नया प्रोडक्शन हाउस शुरू किया था। फ़िल्मालय की पहली फ़िल्म थी “दिल देके देखो।” शशधर मुखर्जी ने ये फ़िल्म नासिर हुसैन से ही डायरेक्ट कराई। और एक दफ़ा फिर से शम्मी कपूर को हीरो लिया गया। शम्मी कपूर की हीरोइन बनी आशा पारेख। आशा पारेख का डेब्यू इसी फ़िल्म से हुआ। इस फ़िल्म में उषा खन्ना जी ने संगीत दिया था। उनकी भी ये पहली फ़िल्म ही थी। “दिल देके देखो” भी कामयाब रही। 1959 में आई ये फ़िल्म उस साल की छठी सबसे सफ़ल फ़िल्म रही थी।
साल 1961 में नासिर हुसैन ने “नासिर हुसैन फ़िल्म्स” नाम से अपनी खुद की फ़िल्म प्रोडक्शन कंपनी शुरू की। और अपने बैनर तले नासिर हुसैन ने जो पहली फ़िल्म बनाई उसका नाम था “जब प्यार किसी से होता है।” इस फ़िल्म में देव आनंद हीरो थे। दरअसल, जब नासिर हुसैन ने देव आनंद को “तुमसा नहीं देखा” ऑफ़र की थी तो देव साहब ने नासिर साहब से कहा था कि जब तुम खुद कोई फ़िल्म प्रोड्यूस करोगे तो मैं तुम्हारे साथ ज़रूर काम करूंगा। फ़िलहाल मैं दूसरी फ़िल्मों में व्यस्त हूं।
देव साहब और नासिर हुसैन की दोस्ती मुनीमजी(1955) के दौरान हुई थी। मुनीमजी के राइटर नासिर हुसैन ही थे। 1957 में आई पेइंग गेस्ट की कहानी भी नासिर हुसैन ने लिखी थी। पेइंग गेस्ट के दौरान तो नासिर हुसैन और देव आनंद की दोस्ती और गहरी हो गई थी। बहरहाल, बतौर प्रोड्यूसर नासिर हुसैन की पहली फ़िल्म “जब प्यार किसी से होता है” भी बहुत सफ़ल रही। और देखते ही देखते नासिर हुसैन फ़िल्म इंडस्ट्री के टॉप के डायरेक्टर्स-प्रोड्यूसर्स में से एक बन गए। नासिर हुसैन के बैनर तले ही “तीसरी मंज़िल” फ़िल्म बनी थी। इस फ़िल्म के नायक शम्मी कपूर थे। और इस फ़िल्म को गोल्डी आनंद ने डायरेक्ट किया था।
गोल्डी आनंद और नासिर हुसैन के बीच शुरुआत में तो सब ठीक था। बाद में उनके रिश्ते खराब हो गए थे। अनिता पाध्ये द्वारा लिखित गोल्डी आनंद की बायोग्राफ़ी “एक था गोल्डी” में गोल्डी आनंद के नज़रिए से नासिर हुसैन व “तीसरी मंज़िल” फ़िल्म की कहानी बताई गई है। वो कहानी किसी और दिन शेयर की जाएगी। “तीसरी मंज़िल” ही वो फ़िल्म भी थी जिससे नासिर हुसैन व आर.डी.बर्मन की असोसिएशन शुरू हुई। और आर.डी.बर्मन नासिर हुसैन के परमानेंट संगीतकार बन गए।
नासिर हुसैन की पहली फ्लॉप फ़िल्म थी 1967 की “बहारों के सपने”। ये राजेश खन्ना की शुरुआती फ़िल्मों में से एक थी। इस फ़िल्म की हीरोइन भी आशा पारेख ही थी। फिर 1969 में आई “प्यार का मौसम”, जिसमें शशि कपूर व आशा पारेख हीरो-हीरोइन थे। ये फ़िल्म कामयाब हो गई। नासिर खान का आत्मविश्वास फिर से लौट आया। अगली फ़िल्म उन्होंने बनाई “कारवां।” जितेंद्र व आशा पारेख स्टारर “कारवां” भी सफ़ल रही। “कारवां” का निर्देशन नासिर हुसैन ने किया। मगर इस फ़िल्म के प्रोड्यूसर के तौर पर उन्होंने नाम दिया ताहिर हुसैन का, जो नासिर खान के भाई थे। एक्टर आमिर खान के पिता थे ये ताहिर हुसैन।
साल 1973 में नासिर हुसैन हाज़िर हुए “यादों की बारात” फ़िल्म लेकर। दिल देके देखो से कारवां तक, नासिर हुसैन की सभी फ़िल्मों की हीरोइन आशा पारेख थी। मगर “यादों की बारात” नासिर हुसैन की पहली ऐसी फ़िल्म थी जिसमें आशा पारेख नहीं थी। “यादों की बारात” भी सफ़ल रही। इसके बाद आई “हम किसी से कम नहीं।” इस फ़िल्म मे ंनासिर हुसैन ने अपने भांजे तारीक खान को ब्रेक दिया था। और ये भी कामयाब रही थी। कहा जाता है कि नासिर हुसैन ने “हम किसी से कम नहीं” फ़िल्म के बाद एक और बड़ी फ़िल्म प्लान की थी जिसमें वो दिलीप कुमार, धर्मेंद्र, आशा पारेख, काजल किरण, ज़ीनत अमान, तारीक खान, ऋषि कपूर, टीना मुनीम व शारदा को लेने वाले थे।
उस फ़िल्म का नाम “ज़बरदस्त” रखा गया था। फ़िल्म मुहुर्त शॉट भी ले लिया गया था। मगर तभी नासिर हुसैन और दिलीप कुमार के बीच मतभेद हो गए और दिलीप कुमार ने फ़िल्म छोड़ दी। अल्टीमेटली वो फ़िल्म नासिर हुसैन ने बंद ही कर दी। इसके बाद नासिर हुसैन ने तीन और फ़िल्में डायरेक्ट की थी। वे थी ज़माने को दिखाना है(1981), मंज़िल-मंज़िल(1984) व ज़बरदस्त(1985). मगर तीनों ही फ़िल्में फ्लॉप हो गई। “ज़बरदस्त” नासिर हुसैन द्वारा निर्देशित आखिरी फ़िल्म थी। और ये उस “ज़बरदस्त” से बिल्कुल अलग थी जो कभी नासिर हुसैन दिलीप कुमार, धर्मेंद्र व अन्य कलाकारों के साथ बनाना चाहते थे। नासिर हुसैन ने ये फ़िल्म सिर्फ़ डायरेक्ट की थी। प्रोड्यूसर थे इस फ़िल्म के मुशीर रियाज़।
नासिर हुसैन ने बाद में दो और फ़िल्में प्रोड्यूस की। वो फ़िल्में थी “कयामत से कयामत तक” व “जो जीता वही सिकंदर।” ये दोनों फ़िल्में नासिर हुसैन के बेटे मंसूर खान ने डायरेक्ट की थी। जबकी उनके भतीजे आमिर खान इन दोनों फ़िल्मों के हीरो थे। और ये दोनों ही फ़िल्में बड़ी हिट रही थी। साल 1995 में आई आमिर खान की “अकेले हम अकेले तुम” के डायलॉग्स नासिर हुसैन ने ही लिखे थे। ये फ़िल्म इंडस्ट्री में नासिर हुसैन का आखिरी काम था।
नासिर हुसैन की निजी ज़िंदगी की तरफ़ रुख करें तो पता चलता है कि उन्होंने मार्गरेट फ्रैंकिना लुईस से शादी की थी जिनसे उनकी मुलाकात हुई थी फ़िल्मिस्तान में काम करने के दौरान। मार्गरेट वहां असिस्टेंट कोरियोग्राफ़र के तौर पर काम करती थी। नासिर हुसैन से शादी करने के बाद मार्गरेट ने अपना नाम आयशा खान कर लिया था। नासिर हुसैन के दो बच्चे हुए। बेटा मंसूर खान और बेटी नुज़हत खान। इन्हीं नुज़हत खान के बेटे हैं एक्टर इमरान खान। इमरान के पिता का नाम अनिल पाल था। मगर नुज़हत खान का उनसे तलाक हो गया था। अनिल पाल से तलाक होने के कुछ सालों बाद नासिर खान की बेटी नुज़हत खान ने एक्टर राजेंद्र ज़ुत्शी से शादी कर ली। हालांकि बाद में राजेंद्र ज़ुत्शी से भी नुज़हत ने तलाक ले लिया।
नासिर हुसैन और आशा पारेख के रिलेशन के बारे में सभी जानते हैं। आशा पारेख नासिर हुसैन से प्यार करती थी। मगर उन्होंने कभी भी नासिर हुसैन से शादी करने की कोशिश नहीं की। क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उनकी वजह से नासिर हुसैन की पत्नी मार्गरेट उर्फ़ आयशा खान का घर टूटे। क्योंकि आयशा खान भी उनकी बहुत अच्छी दोस्त थी। हालांकि नासिर हुसैन और आशा पारेख की प्रेम कहानी विस्तार से जानने के लिए अभी मुझे दो किताबें पढ़नी हैं। एक है आशा पारेख की ऑटोबायोग्राफ़ी “द हिट गर्ल।” और दूसरी है नासिर हुसैन की बायोग्राफ़ी “म्यूज़िक मस्ती मॉडर्निटी।” इन किताबों को देखकर, व इस अफ़ेयर पर आशा जी व नासिर हुसैन ने क्या कहा है, वो जानकर ही इन दोनों के रिश्ते पर बात की जाए तो अच्छा रहेगा। खाली मीडिया के आर्टिकल्स के भरोसे इनके अफ़ेयर के बारे में कुछ लिखना सही नहीं रहेगा।
आज नासिर हुसैन जी की पुण्यतिथि है। हालांकि एक कन्फ्यूज़न ये है कि कुछ जगहों पर नासिर हुसैन की मृत्यु की तारीख 13 मार्च 2002 बताई जाती है तो कुछ लोग कहते हैं कि नासिर हुसैन की मृत्यु 19 मार्च को हुई थी। और मैं फिलहाल ये कहने की स्थिति में नहीं हूं कि इनमें से कौन सी तारीख सही है। तो फिलहाल तो हम आज के दिन को ही नासिर खान जी की मृत्यु तिथि मान लेते हैं। नासिर खान के इस दुनिया से जाने से कोई 1 साल पहले, 2001 में उनकी पत्नी आयशा का भी देहांत हो गया था।
(अज्ञात वीर)