Film Review में पढ़िए द स्टोरीटेलर (2025) जो OTT पर एक माह पहले आई है, दिलचस्प है, देखना तो बनता है..
यूँ ही स्क्रॉल करते हुए कोई अच्छी फिल्म देखने को मिल जाए तो दिनभर की थकान उतर जाती है। डिज़्नी हॉटस्टार पर नाम से आकर्षित होकर क्लिक किया था। क्रेडिट्स से पता चला ग्रेट फ़िल्म मेकर सत्यजित रे की कहानी ‘गोलपो बोलिये तारिणी खुरो’ पर आधारित इस फ़िल्म को निर्देशित किया है अनंत महादेवन ने।
मुख्य किरदारों में परेश रावल, आदिल हुसैन जैसे मंजे हुए अभिनेता और एक छोटे से रोल में रेवती भी हैं। ज़ीरो उम्मीद से शुरू होते हुए भी फ़िल्म ने आहिस्ता आहिस्ता उम्मीद को राई से पहाड़ बना दिया।
फ़िल्म शुरू होती है कहानी कहने (केवल सुनाने,लिखने नहीं) का शौक़ रखने वाले तारिणी बंधोपाध्याय (परेश रावल) से जो अब तक 73 नौकरियां छोड़ चुके हैं। वे माछ यानी मछली खाने के बेहद शौकीन हैं और कैपिटालिज़्म के कट्टर विरोधी हैं। तारिणी की पत्नी अब इस दुनिया में नहीं और अमेरीका में बसे बेटे से वे अक्सर पूंजीवाद पर बहस करते दिखाई पड़ते हैं।
एक मित्र परिवार के साथ अक्सर समय बिताते तारिणी को अखबार में गुजरात के एक व्यवसायी रतन गारोड़िया (आदिल हुसैन) द्वारा दिया विज्ञापन मिलता हैं जिन्हें कहानियाँ सुनाने के लिये कोई स्टोरी टेलर चाहिये।
तारिणी बाबू नौकरी के लिये गुजरात पहुँचते हैं तो मालूम चलता है कि गारोड़िया भाई इनसोमिनिया यानी अनिद्रा रोग के शिकार हैं तो कहानी सुनने से शायद नींद आ जाए ऐसा सोचकर वे तारिणी बाबू को बाकायदा सैलरी पर रख लेते हैं।
फिर दो बातें होती हैं, तारिणी बाबू को मछली खाने की हुड़क होती है तो वे गारोड़िया के नौकर को पटा लेते हैं जो उन्हीं से सीखकर उनके लिये मछली बनाना शुरू करता है, जिसमें पालतू बिल्ली उनकी पार्टनर है। दूसरी बात ये कि एक लाइब्रेरियन सूज़ी (तनिष्ठा चैटर्जी) से किताबों के शौक़ को साझा करते हुए वे दोस्त बना लेते हैं। उनका टाइम अच्छा बीतने लगता है।
गारोड़िया से उन्हें पता चलता है कि वह इंटेलेक्चुअल नहीं हैं इसलिये उनकी प्रेमिका सरस्वती (रेवती) ने उससे विवाह नहीं किया। एक दिन लाइब्रेरी में तारिणी के सामने ये हैरतअंगेज खुलासा होता है कि रेवती की नज़रों में एक बुद्धिजीवी बनने के लिये गाड़ोदिया ने तारिणी द्वारा सुनाई गईं कहानियों को अपने पेन नेम ‘गोर्की’ के नाम से पब्लिश करा लिया। इसका प्रभाव भी पड़ता है रेवती पर जो अब एक विडो हैं। उधर तारिणी बिना कुछ कहे दुर्गापूजा के लिये कोलकाता लौट आते हैं।
वे गहरी सोच में पड़े तो दिखते हैं लेकिन उनके साथ हुए धोखे को लेकर वे सहज दिखाई पड़ते हैं। पूजा के बाद बहुत ही अनअपेक्षित होते हुए भी तारिणी फिर गुजरात लौटते हैं और तीन महीने फिर से कहानियाँ सुनाते हैं और उसके बाद बेटे के पास जाने की बात कहकर कोलकाता लौट आते हैं।
अब अंत का ट्विस्ट बहुत ही रोमांचक और अनप्रिडिक्टेबल है। क्या सचमुच तारिणी बाबू उतने ही सहज हैं चोरी को लेकर जितना वे दिखाई पड़ते हैं या फिर ये सारी तैयारी गारोड़िया से बदला लेने की थी। सरल से तारिणी बाबू क्या बिजनेस टायकून से सचमुच बदला ले पाते हैं? अंत में क्या होता है तारिणी बाबू और सेलेब्रिटी लेखक बन चुके रतन गारोड़िया का, ये जानने के लिये फ़िल्म देखिये। फ़िल्म 2022 में रिलीज हुई थी लेकिन अभी जनवरी में डिज़्नी हॉटस्टार पर रीरिलीज हुई है।
कई अवार्ड्स जीत चुकी और तीन मंजे हुए अभिनेताओं के अभिनय से सजी ये फ़िल्म मुझे बहुत अच्छी लगी। थोड़ा धैर्य से देखेंगे तो कोलकाता की गलियों, सड़कों पर घूमता कैमरा और बड़े ही धैर्य से जांच परखकर बाजार में मछली खरीदते तारिणी बाबू और उनकी पार्टनर बिल्ली आपको पसंद आएगी। गुजरात की भी कुछ अच्छी लोकेशन्स हैं। देखकर बताइएगा फ़िल्म आपको कैसी लगी?
(अंजू शर्मा)