कभी रुक गए कभी चल दिए
कभी चलते चलते भटक गए
यूँ ही उम्र सारी गुज़र गई
यूँ ही ज़िन्दगी के सितम सहे !
कभी नींद में कभी होश में
तू जहाँ मिला तुझे देख कर !
न नज़र मिली न ज़ुबां हिली
यूँ ही सर झुका के गुज़र गए !
कभी ज़ुल्फ़ पर कभी चश्म पर
कभी तेरे हसीं वजूद पर !
जो पसंद थे मेरी किताब में
वो शेर सारे बिखर गए !
मुझे याद है कभी एक थे
मगर आज हम हैं जुदा जुदा !
वो जुदा हुए तो संवर गए
हम जुदा हुए तो बिखर गए !
कभी अर्श पर कभी फ़र्श पर
कभी उन के दर कभी दर -बदर !
ग़म -ए -आशिक़ी तेरा शुक्रिया
हम कहाँ कहाँ से गुज़र गए !
(परवीन शाकिर)
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