Guru Golwalkar: आज के दौर में गुरू जी यदि जन्म लेते, तो कदाचित उनको आज के टीवी चैनल ‘गूगल बॉय’ कह कर पुकारते — ऐसा विलक्षण था उनका ज्ञान और स्मरणशक्ति..
माधव सदाशिवराव गोलवलकर, जिन्हें पूरे देश में ‘गुरुजी’ के नाम से जाना जाता है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के दूसरे सरसंघचालक थे। उनका जीवन असाधारण प्रतिभा, गहन अध्ययन और आध्यात्मिक साधना का उदाहरण है। अगर वे
बचपन की विलक्षणता और ज्ञान की भूख
गोलवलकर का जन्म महाराष्ट्र के रामटेक में हुआ था। वे अपने माता-पिता की चौथी संतान थे, लेकिन बचपन में ही बाकी भाई-बहनों को खो देने के बाद वे अकेले रह गए। उनके पिता सदाशिवराव ने कठिन परिस्थितियों में भी शिक्षा को प्राथमिकता दी। उन्होंने 20 साल बाद इंटर की परीक्षा दी और फिर स्नातक भी किया। इस वातावरण ने माधव पर गहरा प्रभाव डाला।
माधव ने बचपन में ही रामायण, महाभारत, पंचतंत्र, बाइबिल और शेक्सपियर जैसे ग्रंथों का अध्ययन शुरू कर दिया था। जब वे मात्र छह वर्ष के थे, उनके पिता ने उन्हें ‘रामरक्षा स्तोत्र’ सुनाया। माधव ने एक ही बार में 38 संस्कृत श्लोक याद कर लिए, जिससे उनके पिता चकित रह गए।
शिक्षा में अद्वितीय प्रदर्शन
मिडिल स्कूल में पढ़ते समय माधव ने पूरी रामचरित मानस कंठस्थ कर ली थी, जबकि उनकी मातृभाषा मराठी थी। हिंदी, अवधी, संस्कृत और अंग्रेजी पर उनकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि शिक्षक भी उनसे प्रभावित रहते थे। एक बार एक अध्यापक ने उन्हें दूसरी किताब पढ़ते देखा और परीक्षा लेने के लिए खड़ा किया। माधव ने न केवल पढ़ाया हुआ पाठ बताया, बल्कि आगे का भी समझा दिया।
अंग्रेजी पर गहरी पकड़ और आत्मविश्वास
उनके बड़े भाई अमृत को स्कूल में अंग्रेजी भाषण देना था, लेकिन तबीयत खराब होने के कारण माधव ने उनकी जगह भाषण दिया। स्कूल निरीक्षक उनके भाषण से इतना प्रभावित हुआ कि उन्हें पुरस्कार दिया गया। एक अन्य घटना में, जब एक अंग्रेज निरीक्षक स्कूल आया और माधव बीमार थे, तो शिक्षक उन्हें घर से बुलाकर लाए ताकि निरीक्षक के सवालों का जवाब दिया जा सके — और माधव ने सभी सवालों के जवाब देकर सबको राहत दी।
हिसलॉप कॉलेज और बाइबिल का ज्ञान
नागपुर के हिसलॉप कॉलेज में पढ़ते समय उन्होंने शेक्सपियर का पूरा साहित्य पहले ही पढ़ लिया था। एक बार अंग्रेजी के प्रोफेसर गार्डनर ने बाइबिल का एक संदर्भ दिया, जिसे माधव ने गलत बताया। प्रोफेसर ने पुस्तकालय से बाइबिल लाकर जांच की और पाया कि माधव सही थे। उन्होंने अपनी गलती मानी और माधव की प्रशंसा की।
आध्यात्मिक झुकाव और विविध रुचियाँ
गोलवलकर ने रामकृष्ण मिशन के स्वामी अखंडानंद की शरण ली थी। वे टेनिस खेलते थे, गंगा में तैरते थे, बांसुरी बजाते थे और नियमित व्यायाम करते थे। लेकिन उनका सबसे बड़ा शौक था पढ़ना। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वे रोज एक किताब पढ़ते और अगली ले जाते। एक दिन में 180 पेज की किताब का अनुवाद करना उनके लिए सामान्य बात थी। इसी कारण उन्हें ‘एक पाठी’ कहा जाने लगा — जो एक बार पढ़े, उसे याद कर ले।
संघ की कमान और विचारधारा
RSS के संस्थापक डॉ. केबी हेडगेवार ने अपेक्षाकृत युवा माधव को संघ की कमान सौंपी थी, जिससे कई लोग हैरान हुए। माधव संघ की स्थापना के समय से डॉ. हेडगेवार के साथ नहीं थे, लेकिन उनकी मेधा और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें इस भूमिका के लिए उपयुक्त बना दिया।
गोलवलकर के आलोचक अक्सर उनकी पुस्तक ‘बंच ऑफ थॉट्स’ को लेकर उन्हें निशाने पर लेते हैं, लेकिन यह कम ही लोग जानते हैं कि वे अपने भाषणों में ईसा मसीह और बाइबिल के उदाहरण भी देते थे। वे हिंदू ग्रंथों के साथ-साथ पश्चिमी साहित्य का भी गहन अध्ययन करते थे।
गुरु गोलवलकर का जीवन एक प्रेरणा है — एक ऐसा बालक जिसने बचपन में ही असाधारण ज्ञान अर्जित किया, और आगे चलकर एक विशाल संगठन का नेतृत्व किया। उनकी स्मरणशक्ति, अध्ययनशीलता, आध्यात्मिकता और नेतृत्व क्षमता उन्हें आज भी एक विलक्षण व्यक्तित्व बनाती है।
(प्रस्तुति -त्रिपाठी पारिजात)