Tuesday, October 21, 2025
Google search engine
HomeTop NewsBJP Government: हिन्दू हित की बात नहीं करोगे तो लंबा नहीं चलोगे...

BJP Government: हिन्दू हित की बात नहीं करोगे तो लंबा नहीं चलोगे !

BJP Government: भाजपा अगर सत्ता में है तो हिंदू राष्ट्रवाद के कारण है उसे कभी नहीं भूलनी चाहिए कि उसकी उपेक्षा पर हिंदू राष्ट्रवाद मौन नहीं रहेगा

BJP Government: भाजपा अगर सत्ता में है तो हिंदू राष्ट्रवाद के कारण है उसे कभी नहीं भूलनी चाहिए कि उसकी उपेक्षा पर हिंदू राष्ट्रवाद मौन नहीं रहेगा
2014 में जब भारतीय जनता पार्टी अभूतपूर्व बहुमत के साथ सत्ता में आई, तो यह केवल एक राजनीतिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि राष्ट्रवादी हिंदू समाज की वर्षों की प्रतीक्षा और आशा का विस्फोट था। राम मंदिर, समान नागरिक संहिता, आतंकवाद के विरुद्ध कठोर नीति, और सांस्कृतिक पुनर्जागरण जैसे मुद्दों पर यह समाज पहली बार संगठित होकर खड़ा हुआ था। लेकिन एक दशक बीतने के बाद, वही जनसमूह अब ठगा-सा महसूस कर रहा है — उपेक्षित, अनसुना और छला हुआ। यह लेख इसी गहराते मोहभंग की पड़ताल करता है, जो भाजपा की वैचारिक यात्रा को यूपीए-2 जैसे पतन की ओर ले जा सकता है।
भाजपा अगर सत्ता में है तो हिंदू राष्ट्रवाद के कारण है उसे कभी नहीं भूलनी चाहिए कि उसकी उपेक्षा पर हिंदू राष्ट्रवाद मौन नहीं रहेगा: हिंदू राष्ट्रवाद न तो मरा है, न थका है — लेकिन वह अब मौन नहीं रहेगा यही जमीनी हकीकत है , वह विकल्प तलाशने को तैयार है।

2014 से 2024 तक: राष्ट्रवादी हिंदू चेतना से मोहभंग तक

2014 और 2019 के आम चुनावों में भाजपा की जीत सिर्फ एक पार्टी की राजनीतिक सफलता नहीं थी, बल्कि यह भारत के राष्ट्रवादी हिंदू समाज की एक ऐतिहासिक वैचारिक क्रांति थी। उस समय हिंदू समाज पहली बार जातीय सीमाओं से ऊपर उठकर एक सांस्कृतिक राष्ट्र की परिकल्पना के लिए खड़ा हुआ — राम मंदिर, समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण, आतंकवाद-मुक्त भारत और गौरवमयी इतिहास की पुनर्स्थापना जैसे मुद्दों पर। लेकिन 2024 के चुनाव परिणामों ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह क्रांति अब थम-सी गई है, और उसका मूल आधार — राष्ट्रवादी हिंदू मतदाता — आज अपने को लेकर उपेक्षित, छला और भ्रमित महसूस कर रहा है

भाजपा की तुष्टीकरण नीति और कोर वोटर्स की उपेक्षा

भाजपा के रणनीतिकार अच्छी तरह जानते हैं कि मुस्लिम समाज से पार्टी को मुश्किल से 1–2% वोट ही मिलता है, वह भी अपवादस्वरूप। इसके बावजूद पिछले वर्षों में जिस तरह से पसमांदा मुसलमानों को लुभाने, हज यात्रा में सुविधाएँ बढ़ाने, मुस्लिम बहुल इलाकों में विशेष योजनाएँ चलाने और वक्फ संपत्तियों पर मौन रहने की नीति अपनाई गई, उसने कोर समर्थकों के मन में गहरी खिन्नता उत्पन्न की है। उन्हें यह लगने लगा है कि भाजपा अब अपने असली समर्थकों की जगह उन वर्गों को प्राथमिकता दे रही है जिनका समर्थन कभी रहा ही नहीं।

हिंदुत्व की मुखर आवाज़ों का हाशिये पर जाना

यह असंतोष तब और बढ़ गया जब पार्टी ने तेलंगाना के प्रखर हिंदुत्ववादी विधायक टी. राजा सिंह को प्रदेश अध्यक्ष जैसे पद से दूर रखा और अपेक्षाकृत अलोकप्रिय चेहरों को तरजीह दी। उनके इस्तीफे ने यह संदेश दिया कि अब भाजपा में स्पष्ट हिंदुत्व की आवाज़ें न केवल दबाई जा रही हैं, बल्कि नेतृत्व भी उनसे दूरी बना रहा है। राजा सिंह का यह त्यागपत्र किसी व्यक्तिगत अपमान का परिणाम नहीं था, बल्कि पार्टी की उस नीतिगत दिशा के खिलाफ प्रतिक्रिया थी, जिसमें अब राष्ट्रवाद के बजाय रणनीतिक तुष्टीकरण को प्राथमिकता दी जा रही है।

योगी आदित्यनाथ को दरकिनार करने का प्रभाव

उसी तरह उत्तर प्रदेश की विजयगाथा के सूत्रधार योगी आदित्यनाथ को लेकर पार्टी की दूरी और मौन ने लाखों राष्ट्रवादी मतदाताओं को हतप्रभ कर दिया। योगी न केवल एक निर्णायक प्रशासक हैं, बल्कि मोदी के बाद देश का सबसे प्रबल प्रधानमंत्री पद का चेहरा माने जाते हैं। उन्होंने सभी वर्गों के साथ समभाव बनाते हुए कानून-व्यवस्था, विकास और सांस्कृतिक अस्मिता में संतुलन का जो उदाहरण प्रस्तुत किया, वह भाजपा की मूल विचारधारा का सजीव रूप था। इसके बावजूद 2024 में उन्हें प्रचार से हाशिए पर रखना और हटाने की चर्चा पर शीर्ष नेतृत्व का मौन रहना, कोर मतदाता के मन में यह आशंका भर गया कि अब पार्टी अपने सबसे स्पष्ट राष्ट्रवादी चेहरों से भी कतराने लगी है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह

इस पूरे घटनाक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका भी गंभीर प्रश्नों के घेरे में है। वर्षों तक हिंदू समाज की प्रेरणा स्रोत रही यह संस्था आज वक्फ बोर्ड की असीम ताकत, मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण, समान नागरिक संहिता जैसे मूल विषयों पर या तो मौन है या अस्पष्ट। संघ द्वारा बार-बार मुसलमानों के साथ समावेशी संवाद की बात करना, जबकि राष्ट्रवादी हिंदू अपने ही मुद्दों पर निरंतर अनसुना हो रहा है — यह उस सामाजिक आधार को उलझन और निराशा में डाल रहा है जिसने अपने जीवन का संपूर्ण समर्पण इस विचारधारा को दिया था।

राम मंदिर से आगे की लड़ाइयाँ: भूल या रणनीति

राम मंदिर के निर्माण के साथ हिंदू समाज को लगा था कि अब एक निर्णायक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का युग प्रारंभ होगा। लेकिन जैसे ही मंदिर का निर्माण पूर्णता की ओर बढ़ा, मथुरा और काशी जैसे शेष संघर्ष पीछे धकेल दिए गए। धार्मिक शिक्षा, मंदिर स्वायत्तता, और लव-जिहाद या धर्मांतरण जैसे विषयों पर अब पार्टी केवल प्रतीकात्मक बयान देती है, ठोस नीतियाँ या कार्रवाई नहीं होती। मतदाता यह कहने लगा है कि “राम मंदिर बनते ही हमें भुला दिया गया।”

विश्वासपात्र जातीय वर्गों का असंतोष

इसी बीच वे जातियाँ और वर्ग जिनसे भाजपा को निरंतर भारी समर्थन मिला — ब्राह्मण, बनिया, ओबीसी, दलित, पिछड़े — अब यह महसूस करने लगे हैं कि पार्टी उन्हें ‘कन्फर्म वोट बैंक’ मानकर उनके मुद्दों को प्राथमिकता नहीं देती। सम्मान, भागीदारी और नीति में प्रतिनिधित्व की माँग अगर नजरअंदाज की जाएगी, तो यह समर्थन चुपचाप टूट सकता है।

नीतिगत साहस की कमी या रणनीतिक चूक?

जनसंख्या नियंत्रण कानून हो, समान नागरिक संहिता हो, या वक्फ बोर्ड की असीमित शक्ति — इन सभी विषयों पर भाजपा की ओर से या तो खामोशी है या ड्राफ्टिंग और चर्चा का नाम लेकर टालमटोल की रणनीति। राष्ट्रवादी समाज अब इसे राजनीतिक विवशता नहीं, बल्कि नीतिगत साहस की कमी और विश्वासघात मान रहा है।

रोजगार की विफलता और युवा वर्ग की निराशा

युवा वर्ग, जो राष्ट्रवाद के साथ-साथ रोज़गार और आर्थिक स्थायित्व की आशा लेकर भाजपा के साथ जुड़ा था, अब बेरोजगारी, सरकारी भर्तियों की विफलता, और निरंतर निजीकरण से गहरा आहत है। पेपर लीक, वर्षों तक रुकी हुई भर्तियाँ और पारदर्शिता का अभाव उस पीढ़ी को हताश कर रहा है जो देश और धर्म दोनों के लिए जीना चाहती थी। “हमें सिर्फ हिंदुत्व नहीं, हिंदुत्व के साथ रोजगार भी चाहिए” — यह अब जमीन का नारा बन चुका है।

विचारधारा से जुड़े कार्यकर्ताओं की उपेक्षा

दूसरी ओर, पार्टी टिकट वितरण में उन कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज कर रही है जिन्होंने विचारधारा और तपस्या से वर्षों तक संगठन को सींचा। उनकी जगह बाहरी, वंशवादी और पूंजीशाली चेहरे लाए जा रहे हैं, जो चुनाव तो लड़ सकते हैं, लेकिन विचारधारा को आगे नहीं बढ़ा सकते। इससे संगठन की आत्मा ही घायल हो रही है।

2024: वैचारिक जनादेश की चेतावनी

2024 के चुनाव नतीजे केवल सीटों की संख्या नहीं, बल्कि एक वैचारिक जनादेश का संकेत थे। यदि भाजपा अब भी आत्ममंथन नहीं करती, तो 2027 के राज्य चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनाव में परिणाम और भी खतरनाक हो सकते हैं। आज का राष्ट्रवादी हिंदू समाज केवल भाषणों, नारों और ‘जय श्रीराम’ के उद्घोष से संतुष्ट नहीं होता — वह अब नीति में भागीदारी, सम्मानजनक संवाद और सांस्कृतिक नेतृत्व चाहता है।

अंतिम चेतावनी: क्या भाजपा लौटेगी अपने मूल पथ पर?

भाजपा को अब स्पष्ट निर्णय लेना होगा — कि वह सत्ता की खातिर तुष्टीकरण, चुप्पी और रणनीतिक समर्पण की राजनीति करेगी, या अपने मूल पथ — रामराज्य, राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक आत्म-सम्मान — पर दृढ़तापूर्वक वापस लौटेगी। यदि पार्टी समय रहते नहीं चेती, तो उसका कोर राष्ट्रवादी वोटबैंक इतिहास बन सकता है, और एक नए वैचारिक नेतृत्व का उदय निश्चित हो जाएगा।
(प्रस्तुति -राजकुमार सिंह)
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments