Tuesday, October 21, 2025
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Parakh Saxena writes: ठाकरे परिवार का हिंदुत्व का खेल कहीं मात्र राजनीति तो नहीं था?

Parakh Saxena ने एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा किया है जो सच इसलिये लगता है क्योंकि उद्धव ठाकरे और उनके बेटे की शिवसेना एकदम उल्टी राह पर चलती नजर आ रही है..

Parakh Saxena ने एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा किया है जो सच इसलिये लगता है क्योंकि उद्धव ठाकरे और उनके बेटे की शिवसेना एकदम उल्टी राह पर चलती नजर आ रही है..
यू तो असली शिवसेना बीजेपी के साथ है मगर ठाकरे बंधुओ की राजनीति देखकर एक बड़ा प्रश्न ठाकरे परिवार पर उठता है कि ये जो हिंदुत्व का खेल रच रहे थे वो राजनीति मात्र तो नहीं था?
आज का गुजरात और पश्चिमी महाराष्ट्र मिलकर बॉम्बे राज्य था, इसी के बंटवारे को लेकर मराठी और गुजराती भाषी लोगो के बीच कई दंगे हुए, आखिर 1960 मे अलग राज्य बन गए लेकिन दोनों समाज के मनभेद खत्म नहीं हुए।
इसी अवसर का फायदा उठाकर 1966 मे बाल ठाकरे द्वारा शिवसेना बनी, उस समय गुजराती और दक्षिण भारतीय ठाकरे के निशाने पर थे।
लेकिन चुनावों मे कुछ ख़ास परिणाम नहीं दिखे, उस समय ये महज मराठी मे बोर्ड ना होने की वज़ह से दुकानदारो की धुलाई करते रहते थे। कांग्रेस महाराष्ट्र मे एकछत्र बैठी थी, लेकिन आखिर मे इन्हे मील का पत्थर मिला।
1984 मे बीजेपी ने राम मंदिर का मुद्दा उठाया और आडवाणी जिस तरह से फेमस हुए उससे ठाकरे को भी हिम्मत मिली। महाराष्ट्र मे उस समय सिर्फ हिंदुत्व की ही पीच खाली पड़ी थी, बीजेपी अपना झंडा लगाए उससे पहले ठाकरे ने अपने झंडे गाड़ दिये।
जैसी नफरत पहले गुजराती और दक्षिण भारतीयों के खिलाफ फैलाई जा रही थी अब वैसे ही भाषण मुसलमानो के खिलाफ शुरू हो गए। यहाँ तक कि बीजेपी बेकफुट पर रह गयी, 1995 मे बीजेपी के ही समर्थन से शिवसेना का मुख्यमंत्री बना।
इन सबमे एक बात अच्छी हो गयी कि महाराष्ट्र मे जेहाद काफी हद तक थम गया, लेकिन 1999 के बाद शिवसेना के फिर से पुराने जैसे हाल हो गए। 2014 आते आते बीजेपी शिवसेना से काफी आगे आ गयी।
2012 मे बाल ठाकरे की भी मृत्यु हो गयी और उसके बाद उद्धव की मौकापरस्ती सभी ने देखी, भतीजे राज ठाकरे ने अलग पार्टी बनाकर हिंदुत्व पर चलने का ढोंग किया मगर पिछले कुछ दिनों मे वो मुखौटा भी उतरने लग गया।
ये बात ठीक है कि हिंदुत्व का जो जूनून जगाया उसमे आनंद दिघे, एकनाथ शिंदे और नारायण राणे जैसे लोग जन्मे जो बिना स्वांग के हिंदूवादी निकले और आज शिवसेना ऐसे ही लोगो के हाथ मे है।
बाल ठाकरे पर शक करने का जो सबसे बड़ा कारण है वो उद्धव और राज के काम करने का तरीका है। उद्धव ठाकरे जिस तरह कांग्रेस के आगे नतमस्तक हुआ, राज जिस तरह की राजनीति खेल रहा है वो कही ना कही पारिवारिक महत्वकांक्षा को दर्शाते है।
ऐसे मे आप क्या भरोसा कर सकेंगे कि बाल ठाकरे खुद मन से हिंदूवादी रहे हो? यदि वेशभूषा से विचारधारा तय होनी हो तो लालू से बड़ा जमीनी नेता तो कोई हुआ ही नहीं या फिर केजरीवाल से बड़ा साधारण व्यक्ति कोई नहीं हुआ।
राज ठाकरे के लोग मराठी ना आने पर लोगो को पीट रहे है, बहुत लोगो को लग रहा है कि इससे व्यापारी वर्ग महाराष्ट्र छोड़कर पड़ोसी राज्यों मे भागेगा और महाराष्ट्र अगला बंगाल बन जाएगा।
लेकिन ये दूर की कोढ़ी है महाराष्ट्र मे फडणवीस, शिंदे और पवार की तिगड़ी बहुत मजबूत है और फिर बंगाल मे कम्युनिस्ट सत्ता मे थे, राज ठाकरे का तो एक विधायक तक नहीं है। इसलिए महाराष्ट्र पर बंगाल वाला संकट नहीं आने वाला।
मूल प्रश्न पर चले तो एकनाथ शिंदे जैसे लोगो की बात अलग है क्योंकि ये आंदोलनों से निकले नेता है, इन्होने आनंद दिघे के अंडर काफी जमीनी काम भी किया है। देखा जाए तो उद्धव के मुगालते भी दूर किये इसलिए शिंदे पर पैनी नजर काम
नहीं करेंगी।
खैर बाल ठाकरे जो भी हो मगर उन्हें ये सलाह तो इतिहास जरूर देगा कि खुद का घर संभला नहीं और चले थे पूरे महाराष्ट्र पर राज करने!
(परख सक्सेना)
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