Parakh Saxena writes:मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी दोनों ही आयु के उस पड़ाव मे है जो 75 मे रिटायर हो भी जाए तो भी इतिहास उन्हें हमेशा याद रखेगा।
पाठको के सुलभ संज्ञान के लिये ये बताना आवश्यक है कि भागवत और मोदी दोनों बचपन के दोस्त भी है, ज़ब मोदीजी संघ मे थे तो उन्हें शुरुआत मे नागपुर रहना पड़ा और तब मोहन भागवत से उनकी दोस्ती हुई थी।
उस समय केशव भवन मे किसने सोचा होगा कि उनकी आँखों के सामने भविष्य के सरसंघचालक और प्रधानमंत्री है।
2009 मे ज़ब बीजेपी आंतरिक कलह से जूझ रही थी, संघ प्रमुख के एस सुदर्शन इस्तीफ़ा दें चुके थे उस समय मोहन भागवत ने संघ की जिम्मेदारी ली और आज संघ परिवार जो कुछ भी है यहाँ तक की मोदीजी प्रधानमंत्री है तो वो भी मोहन भागवत की वज़ह से संभव हुआ।
मोहन भागवत के कई बयानो पर असहमति होती है लेकिन योगदान पर ध्यान दो तो ये शिकायते दूर हो सकती है। मोहन भागवत के निंदको को 2009 का दौर याद ही नहीं है।
दूसरी ओर नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों पर अब पूरी पीएचडी हो सकती है। एक गरीब परिवार से आया व्यक्ति भारतीय इतिहास का सबसे लोकप्रिय नेता बनता है। 150 करोड़ की आबादी वाले देश मे 75% से ज्यादा अप्रूवल रेटिंग बहुत बड़ी बात है।
मोहन भागवत की व्यक्तिगत इच्छा होंगी कि इतिहास उन्हें डॉ हेडगेवार और गुरु गोलवलकर की सूची मे रखे, जबकि नरेंद्र मोदी चाहेंगे कि वे सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री तो हो ही गए बस अब ऐसी ऊंचाई पर जाए कि कोई छू ना सके।
लेकिन ये दोनों नेता एक बात नहीं जानते कि असल मे ये दोनों ही अब दुनिया के लिये मापदंड बन चुके है।
नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत दोनों ही ना भूतों ना भविष्यति वाली स्थिति मे है, इनकी जितनी मर्जी आलोचना कर लो लेकिन राजनीति मे अब दोबारा मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी नहीं बनेंगे।
मोहन भागवत का रिटायरमेंट आयु से बंधा नहीं है क्योंकि संघ मे उत्तराधिकार की परंपरा अलग ढंग से है। लेकिन ये मोदीजी के लिये विचारणीय है, भक्ति साइड मे रखकर सोचो तो सबकुछ तो हासिल कर लिया।
पिछले 78 वर्षो मे देश इतना सशक्त कभी नहीं था जितना आज है, चुनौतिया तो हमेशा रहेगी लेकिन अब जनता मे विश्वास भी है। 2014 का अंधकार बहुत पीछे छूट चुका है।
थोड़ा व्यक्तिगत हो जायेगा शायद कई पाठको को पसंद ना आये मगर मोदीजी को अपने लिये अब समय निकालना चाहिए, जिस उद्देश्य से उन्होंने वैवाहिक जीवन का त्याग किया था वो पूरा हो चुका है।
यदि जशोदा बेन दिल्ली आ जाये और लुटियन्स दिल्ली के किसी आलिशान बंगले के बगीचे मे मोदीजी के साथ सुबह सुबह चाय की चुस्की लेते दिखे तो यह आँखों को सुकून देने वाला एक आदर्श रिटायरमेंट होगा।
रिटायरमेंट इसलिए क्योंकि सारे काम हो गए है, रहा सवाल अखंड भारत का तो वो भी आज नहीं तो कल पूरा हो जायेगा। बीजेपी के पास योग्य चेहरे है, पीछे से संघ तो है ही।
हालांकि ये व्यक्तिगत इच्छा है, शायद वे राष्ट्रपति भी बनेंगे, लोगो का मन नहीं भरने वाला। हम उस दौर मे जी रहे है ज़ब सदियों की प्रतीक्षा के बाद एक बड़ा शासक मिलता है और जनता मरते दम तक उसके साथ खड़ी होती है।
प्रजा परवाह नहीं करती कि शासक भी तो मानवीय कष्टों से बंधा है, उसका निजी जीवन है। समुद्रगुप्त के बाद अब एक ऐसा शासक आया जिसे शासन के लिये पर्याप्त समय मिला और लोकप्रियता भी वैसी ही कमाई।
इन दो के बीच जितने आये कोई ठीक से शासन नहीं कर सका तो कोई संघर्षो मे उलझा रहा।
कायदे से तो मोहन भागवत सही बोल रहे है, लोगो को भले ही राजनीति लगे मगर भागवत के रूप मे मोदीजी के एक दोस्त की सलाह भी है कि बहुत काम कर लिया अब विश्राम भी कीजिये।
मोदी युग के हर क्षण को लिखते चलिए, उसकी बाते कीजिये और उसकी तस्वीरे लेते चलिए। इतिहास का एक बहुत स्वर्णिम अध्याय अपने उपसंहार की पूर्ति पर है।
(परख सक्सेना)