Post by Acharya Anil Vats: माता सीता सनातन इतिहास में एक आदर्श महिला हुई हैं जिन्होंने मर्यादा पुरुषोतम भगवन श्रीराम की जीवन संगिनी बनकर उनका हर कदम पर साथ दिया आज के समय में सीता के जीवन से हम क्या सीखा सकते हैं इस बाबत आज हम कुछ चर्चा करेंगे।
सीता का तो जन्म ही भूमि से हुआ था, जिसकी वजह से वो धरती की धड़कनों को भी पहचानती थी। उनका एक नाम भूमिजा भी है। वो कोसो दूर से आती हुई पदचाप को सुन लेती थी, पशु पक्षियों की भाषा समझती थी, हवाओं का रुख पहचानती थी, पेड़ पौधे लताओं से बातें करती थी, जिसकी वजह से वो आने वाले संकट को भी पहले से भांप लेती थी, प्रकृति आपदा का उनको पहले से ज्ञात हो जाता था।
तब श्रीराम और लक्ष्मण सीता का प्रकृति को पहचाने का ये गुण देख कर बहुत प्रभावित हुए, लक्ष्मण ने पूरे वनवास काल में हर कार्य सीता की सलाह से ही किये।
सीता साहित्य प्रेमी भी थी, मिथिला तो था ही शिक्षा प्रधान राज्य, मिथिला में ज्ञान की गंगा बहती थी, राजा जनक समय समय पर साहित्य संगोष्ठीयां करते रहते थे जिनमें सीता भी बचपन से ही भाग लेती थी।
सीता ने महिलाओं के उत्थान के लिए बहुत कार्य किये , जैसे सीता ही थी जो सबसे पहले महिला शक्षिका को गुरुकुल तक लेकर गयी, हालांकि मिथिला एक शिक्षाप्रधान राज्य था, वहां पर कन्याओं को शिक्षा प्राप्त करने के बराबर के अधिकार थे। लेकिन कन्याएं सीता से पहले घरों में ही शिक्षा प्राप्त करती थी।
राजा जनक पहले इंसान थे जिन्होंने अपनी पुत्रियों को सबसे पहले गुरुकुल में भेज कर शिक्षा दिलवाई और इसके बाद सीता ही थी वो जो महिला शिक्षका को सबसे पहले गुरुकुल तक लेकर गयी। देवी गार्गी जिनको वो अपनी गुरु मानती थी। उनको आग्रह करके वो ही गुरुकल तक लेकर गयी थी ताकि वहां पर शिक्षा देकर वो अन्य कन्याओं को भी लाभ दे सके उनका उत्थान कर सके।
सीता ने ही सबसे पहले माता गौरी का मंदिर बनवाया था।
बाल्यकाल से ही सीता की माता सुनयना अपनी सभी पुत्रियों को अपने साथ पाकशाला में रखती थी उनको भोजन बनाना तो सिखाती ही थी साथ ही उत्तम भोजन के गुणों के बारे में जानकारी देती थी। सीता का यही गुण आगे चलकर उनके काम भी आया।
उनको पहचान थी कहाँ मिट्टी के नीचे से शकरकंद निकलेगा, कहा कचालू, कुछ भी करके वो भोजन का प्रंबन्ध कर ही लेती थी। इससे हमको यही शिक्षा मिलती है चाहे हम कितने भी पढेलिखे हो, कितने ही धनवान परिवार से हो, कितने ही घरेलू कर्मचारी हो हमारी मदद के लिए लेकिन हमको स्वयं भी सब कार्य करने आने चाहिए ।
अयोध्या की महारानी होने के बाद भी सीता ने अपना जीवन बिना महंगे कपड़े , बिना महंगे साजो श्रृंगार के बिता दिया, उनका सादा जीवनशैली ही उनकी असली खूबसूरती थी।
अयोध्या की महारानी होने के बाद भी सीता ने अपना जीवन बिना महंगे कपड़े , बिना महंगे साजो श्रृंगार के बिता दिया , उनका सादा जीवनशैली ही उनकी असली खूबसूरती थी
हमको ऋषितुल्य जीवन जीना है तो सबसे पहले क्रोध व अंहकार पर विजय प्राप्त करनी होगी क्योंकि ये दोनों ही अवगुण हमारे सभी गुणों को खत्म कर देते है।
भले ही हम सीता के जितने महान नहीं बन सकते पर अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रह सकते है, और उनका विश्वास कभी न तोड़े , यही सच्चे जीवनसाथी के गुण होते है।
सीता से हमको सीखना चाहिए कि हम भी स्वावलंबी बन सके। कैसे सीता ने वन में रहकर अपने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया, उनको पालपोस कर बड़ा किया। कैसे उनमें इंसानियत के गुण व संस्कार पोषित किये। कैसे उनमें बाल्यकाल से ज्ञान की गंगा प्रवाहित की, कैसे उनको छोटी सी उम्र में महान यौद्धा बनाया। कैसे उनको वन में छोटे से छोटा काम करना सिखाया। शायद सीता इस धरती की पहली सिंगल मदर थी जिन्होंने बिना परिवार व पति के अपने बच्चों को बड़ा किया।
सीता हम सबकी आदर्श है, हम सब की प्रेरणास्त्रोत है शुद्ध सरल, सात्विक, सतीत्व, स्वालंबी, संघर्ष, शालीनता, सुदृढता, सुंदरता, सहृदयता का परिचायक है सीताजी का चरित्र।।
(आचार्य अनिल वत्स)