Rickshaw Driver: नब्बे साल की उमर में जब बदन ने कह दिया अब और काम नहीं कर पाउंगा तब लिया रिटायरमेन्ट गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिये मेहनतकशी करने वाले इस महापुरुष ने ! मेरा नमन इनको !!
ये कहानी 1987 के दौर के चाईना की है एक 74 वर्षीय रिक्शा चालक बाई फांगली घर लौटते वक़्त सोच रहे थे की अब काम से रिटायरमेंट लिया जाए लेकिन तब ही उन्होने खेत में मज़दूरी करते हुए बच्चों को देखा तो उन्होनें उन बच्चो से मज़दूरी करने का कारण पूछा तो उन्होनें बताया की वो अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए मज़दूरी कर रहे हैं।
ये बात सुनकर बूढ़े फांगली ने अपने रिटायरमेंट का प्लान कैंसिल कर दिया उन्होंने चुपचाप तय किया कि अभी उन्हे बहुत कुछ करना है।
वह वापस तियानजिन गए, एक छोटा सा कमरा किराए पर लिया, सादा भोजन किया, पुराने कपड़े पहने और दिन-रात मेहनत की। उन्होंने जो भी पैसा कमाया, सब गरीब बच्चों की पढ़ाई के खर्चो मे लगा दिया।
लगभग दो दशकों तक उन्होंने अपनी हर चीज़ दूसरों के लिए दे दी।
2001 में, जब वे लगभग 90 वर्ष के हो गए तब उन्होने अपनी आखिरी दान राशि दी और छात्रों से कहा कि अब उनका शरीर और सहन नहीं कर सकता। तब तक उन्होंने कुल 3,50,000 युआन दान किए थे जिससे 300 से अधिक बच्चों को पढ़ने का अवसर मिला।
2005 में उनका निधन हो गया। अपने लिए कोई संपत्ति नहीं छोड़ी, लेकिन एक ऐसी विरासत छोड़ गए जो सोने से भी अधिक कीमती थी, अवसर, सम्मान और आशा।
अगर एक व्यक्ति, जिसके पास सिर्फ़ एक रिक्शा था, 300 ज़िंदगियाँ बदल सकता है — तो सोचिए, हमारे पास जो साधन हैं उनसे आप और मैं क्या कर सकते हैं।