Sanskrit Learning Online: संस्कृत में संवाद को सहज, सरस और सजीव बनाने के उद्देश्य से दस-दिवसीय अंतर्जालीय संस्कृत शिक्षण शिविर का श्रीगणेश हुआ..
पटना, 12 जुलाई 2025। सर्वत्र संस्कृतम् एवं विहार संस्कृत संजीवन समाज, पटना के संयुक्त तत्वावधान में “आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान” के अंतर्गत गोस्वामी तुलसीदास स्मृति अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्जालीय (ऑनलाइन) दशदिवसात्मक संस्कृत सम्भाषण शिविर का भव्य उद्घाटन समारोह सावन मास की शुभ वेला में सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. मुकेश कुमार ओझा (राष्ट्रीय अध्यक्ष, आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान एवं महासचिव, विहार संस्कृत संजीवन समाज, पटना) ने कहा—”गोस्वामी तुलसीदास जी न केवल लोकभाषा के महान रचनाकार थे, बल्कि वे संस्कृत पर अत्यंत गहरी पकड़ रखने वाले विद्वान भी थे। उनकी काव्य चेतना और भावनात्मक गहराई संस्कृत साहित्य की परम्परा से अनुप्राणित है। ‘रामचरितमानस’ की संरचना में संस्कृत व्याकरण, अलंकार और दर्शन की छाया स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।”
उद्घाटनकर्ता डॉ. अनिल कुमार सिंह (पूर्व सचिव, गृह विभाग, उत्तर प्रदेश एवं प्रधान संरक्षक, अभियान) ने उद्घाटन भाषण में कहा—
“तुलसीदास संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। उन्होंने संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन कर जनभाषा में रामकथा को प्रस्तुत किया। उनका संस्कृत से संबंध केवल वैदुष्य तक सीमित नहीं था, बल्कि उनके चिंतन का आधार भी संस्कृत धर्मग्रंथ ही थे।
मुख्य अतिथि धर्मेन्द्र पति त्रिपाठी (पूर्व संयुक्त निदेशक, पेंशन विभाग, उत्तर प्रदेश) ने अपने वक्तव्य में कहा— “तुलसीदास का संस्कृत से ऐसा आत्मिक संबंध था कि उन्होंने लोक में प्रसार हेतु संस्कृत तत्वज्ञान को अवधी भाषा में व्यक्त किया। आज की आवश्यकता है कि हम उनके अनुकरण में संस्कृत को व्यवहार की भाषा बनाएं।”
मुख्य वक्ता डॉ. मिथिलेश झा (संरक्षक, अभियान) ने कहा— “संस्कृत और तुलसीदास दोनों भारतीय आत्मा के दो प्रमुख स्रोत हैं। तुलसीदास के ‘हनुमान चालीसा’ जैसे ग्रंथ संस्कृत छन्दों और शैली से अनुप्राणित हैं। उनका सम्पूर्ण साहित्य संस्कृत-प्रेरित है।”
विशिष्ट अतिथि डॉ. अनिल कुमार चौबे (संस्कृत गीतकार) ने गोस्वामी तुलसीदास पर आधारित स्वयं रचित संस्कृत गीत प्रस्तुत करते हुए कहा—
“तुलसीदास जी के संस्कृत से जुड़ाव को हम उनके प्रत्येक पद में अनुभव कर सकते हैं। स्वागत भाषण एवं ऐक्य मंत्र डॉ. लीना चौहान (उपाध्यक्षा, अभियान) ने किया और कहा—“संस्कृत को बोलचाल की भाषा बनाने हेतु यह शिविर अत्यंत महत्वपूर्ण है। तुलसीदास जी की स्मृति में ऐसे आयोजन संस्कृत पुनर्जागरण का आधार बनते हैं।”
मंच संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन पिंटू कुमार (राष्ट्रीय संयोजक, अभियान एवं शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने किया। उन्होंने कहा— “तुलसीदास जी के संस्कृत योगदान को रेखांकित कर हम संस्कृत भाषा को नई दिशा दे सकते हैं।
इस शुभ अवसर पर डॉ राजेश कुमार मिश्रा, डॉ मधु कुमारी, डॉ नीरा कुमारी, उग्रनारायण झा, मनीष कुमार आदि ने अपने विचार प्रस्तुत किया तथा सुजाता घोष, मनीषा बोदरा, राहुल कुमार, मीणा आर्या, अदिति चोला, मधु कुमारी, अक्षय कुमार मिश्र,, ज्ञानी शारदे,अमिता शर्मा , मीना आर्या, दयानी शारदेय, कल्पना शर्मा, आदि शिविर सदस्यों की उपस्थिति रहीं।
इस शिविर का उद्देश्य संस्कृत में संवाद को सहज, सरस और सजीव बनाना है।” यह दशदिवसीय शिविर संस्कृत को जनसंवाद की भाषा बनाने की दिशा में एक प्रभावी प्रयास सिद्ध हो रहा है।