Satish Chandra Mishra writes: इतनी बेइमानी… इतनी बेशर्मी… इतना झूठ… आज के भारत से भी….पहले संक्षेप में यह जान लीजिए कि कौन था मौलाना मुहम्मद अली जौहर?
आज़म ख़ान रामपुर में जिस मौलाना मुहम्मद अली जौहर के नाम पर यूनिवर्सिटी बनाने के गोरखधंधे में जेल गया और अब लगभग दो साल बाद जेल से बाहर आया है, उस मौलाना मुहम्मद अली जौहर तथा उसके भाई शौकत अली, ने तुर्की ख़िलाफ़त के समर्थन में मुसलमानों को संगठित किया था। और अफगानिस्तान के राजा अमानुल्लाह ख़ान को पत्र लिखा था। उस पत्र में “भारत को दारुल इस्लाम बनाने की अपील” की थी। मौलाना के समर्थक और कुछ सेकुलर इतिहासकार कहते हैं कि यह पत्र ब्रिटिश दमन के विरुद्ध धार्मिक एकता और राजनीतिक सहयोग का अनुरोध था, किसी जिहाद या इस्लामी राज्य की योजना का नहीं।
लेकिन इस पत्र की चर्चा ब्रिटिश खुफिया रिपोर्टों और कुछ समकालीन स्रोतों (जैसे “India Office Records” और “Intelligence Bureau Reports 1921”) में भी इस पत्र का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त यह भी जानिए कि, 1924 में इन्हीं अली भाइयों ने खिलाफत कमेटी के प्रतिनिधि के रूप में मक्का जाकर इमाम हुसैन बिन अली से भी मुलाकात की। इमाम हुसैन बिन अली मक्का का शरीफ और हिजाज़ का राजा था।
दोनों अली बंधुओं का उद्देश्य हुसैन से खिलाफत आंदोलन को समर्थन दिलाना था। लेकिन हुसैन ने उन्हें दोनों को बहुत बुरी तरह लताड़ा और अपमानित किया—उन्हें दरबार में प्रवेश नहीं करने दिया, चाय-पानी तक नहीं दिया, और अपने सिपाहियों से मारपीट करवा कर दोनों को भगा दिया। यह अपमान इतना गहरा था कि शौकत अली ने बाद में कहा, “हमें कुत्तों जैसा सलूक मिला।”
इसी मौलाना मुहम्मद अली जौहर को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाया था। उसको 1923 में कांग्रेस के काकीनाड (कोकनदा) अधिवेशन में बेशर्म कांग्रेसियों ने अपना अध्यक्ष चुना था। मोहनदास करमचंद गांधी ने इस पर सहमति की मुहर लगाई थी, क्योंकि मोहनदास करमचंद की ही सलाह पर मौलाना को अध्यक्ष बनाया गया था।
अतः मौलाना मुहम्मद अली जौहर कैसा आदमी था, ऐसे कलंकित इतिहास के मलमूत्र की बाल्टी जिन कांग्रेसियों के गले में बंधी है, वही कांग्रेसी वीर सावरकर को गाली देकर देश की आंखों में धूल झोंकने में जुटे हैं।
ऐसे घोर सांप्रदायिक, भारत और हिन्दूद्रोही मुल्ले
मौलाना मुहम्मद अली जौहर को अपना अध्यक्ष चुनने वाले कांग्रेसी कितने नीच और निर्लज्ज थे, तथा उस मौलाना मुहम्मद अली जौहर के मन में भारत के प्रति कैसा ज़हर या अमृत भरा था इसे स्वयं तय करिए।
कल इसी मौलाना के नाम पर होते रहे अंधेर और राजनीतिक नंगे नाच की चर्चा करूंगा।
(सतीश चंद्र मिश्रा)