Friday, August 8, 2025
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Shri Ram: आज का भगवद चिंतन: श्रीराम जी में मन्दोदरी को ब्रह्म दर्शन

श्री राम कथा के नारी पात्रों में मन्दोदरी का अत्यन्त विशिष्ट एवं गौरवपूर्ण स्थान हैं, यद्यपि वह सब के लिए दुखदायी रावण की पत्नी और मेघनाद जैसे देवशत्रु की माता थी, पर उसका स्वयं का व्यक्तित्व श्री राम के प्रति अत्यन्त आदरभाव से परिपूर्ण रहा..

 

श्री राम कथा के नारी पात्रों में मन्दोदरी का अत्यन्त विशिष्ट एवं गौरवपूर्ण स्थान हैं, यद्यपि वह सब के लिए दुखदायी रावण की पत्नी और मेघनाद जैसे देवशत्रु की माता थी, पर उसका स्वयं का व्यक्तित्व श्री राम के प्रति अत्यन्त आदरभाव से परिपूर्ण रहा।

वह रावण की पत्नी के रूप में परम पतिव्रता, नीतिमती और पति का परमहित चाहने वाली थी, परन्तु साथ ही वह उसके अनैतिक कार्यों की विरोधी भी थी। वह श्री राम को एक आदर्श पुरुष के रूप में देखती थी, साथ ही उन्हें परमब्रह्म परमात्मा मानती थी।

यद्यपि रावण के वध पर उसे स्वाभाविक शोक था, परन्तु श्री राम के प्रति उनके मन में कहीं भी द्वेषभाव नहीं था, अपितु उसने उनकी भक्तवत्सलता और रावण जैसे शत्रु को भी अपना परमधाम देने की प्रशंसा की थी। विभिन्न ग्रंथों में श्री राम के प्रति उसके निम्नलिखित कथन उसके हृदय की पवित्रता और भगवद्भक्ति को प्रमाणित करते हैं–

‘रामो न मानुष:’– श्री राम जी कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं।

‘मानुषं रूपमास्थाय विष्णु: सत्यपराक्रम:’– सत्यपराक्रमी भगवान विष्णु ने समस्त लोकों का हित करने की इच्छा से मनुष्य का रूप धारण किया हैं।

‘रामो देववर: साक्षात्प्रधानपुरुषेश्वर:’– देवाधिदेव भगवान श्रीराम साक्षात् प्रकृति और पुरुष के नियामक हैं।

‘बिस्वरूप रघुवंसमनि’– रघुकुल-शिरोमणि श्री राम विश्वरूप हैं।

‘मनुज बास सचराचर रुप राम भगवान’– सारा विश्व उन्हीं का स्वरूप हैं। उन्हीं चराचररूप भगवान श्री रामचन्द्रजी ने मनुष्य रूप में अवतार लिया हैं।

‘राघवो भक्तवत्सल:’– श्री राघव भक्तवत्सल हैं।

ये कथन ही नहीं, अपितु मन्दोदरी के हृदय के उद्गार हैं। मयतनुजा निशाचरराज रावण की भार्या मन्दोदरी के श्री राम में ब्रह्मत्व-दर्शन को महर्षि वाल्मीकि जी, महामुनि वेदव्यास जी एवं गोस्वामी तुलसीदास जी तीनों ही युग-सन्तों ने उसे ‘महाबुद्धिशालिनी’, ‘शुभलक्षणा’, नारिललामा’ आदि विशेषणों से विभूषित किया हैं।

राक्षसराज रावण स्वयं उसे देवी की तरह सम्मान देता था। यह विधि का विधान ही था कि वह दानवराज मय की पुत्री एवं राक्षसराज रावण की पत्नी थी। हेमा नामक अप्सरा से उसका जन्म हुआ था।

रावण ऋषि पुलस्त्य का नाती  था, उसके उच्च वंश को देखकर और पितामह ब्रह्माजी द्वारा वरदान की बात जानकर मय ने उसका रावण के साथ विवाह कर दिया था।

मन्दोदरी के चरित्र में किसी भी रामायण के रचयिता ने किसी तरह की राक्षसीय वृत्ति या विकार नहीं पाया हैं। जन्म से असुर होने पर भी उसमें आसुरी सम्पत्ति का लेश भी नहीं था। वृत्रासुर, प्रह्लाद एवं विभीषण भी असुरकुलों के ही थे, परन्तु वृत्ति से परम भागवत थे। यह सत्य मन्दोदरी पर भी लागू होता हैं।

नारी होने के नाते मन्दोदरी की अपनी मर्यादाएं थीं। राजमहल की चारदीवारी उसकी सीमाएं थीं। अनुनय-विनय उसके अस्त्र-शस्त्र थे। पति हित उसका प्रथम कर्तव्य था। वह पूर्णतया ‘पतिहिते रता’ सुनारि थी। फिर भी जब-जब रावण कुमार्ग पर जाने को होता, वह अनुनय-विनय से उसे सावधान करती रहती थी। वह विभीषण की तरह राम-शरणागत नहीं हुई।

पत्नी होने के नाते शायद उसकी अपनी लक्ष्मण-रेखा थी, परन्तु भगवान तो भावना के भूखे हैं (भाव बस्य भगवान)। इस सन्दर्भ में मन्दोदरी कहीं भी किसी रूप में कम पड़ती दृष्टिगोचर नहीं होती। श्री राम की प्रभुता बताकर वह रावण को समझाते हुए कहती हैं– हे नाथ! सुनिए। सीता को लौटाये बिना शम्भु और ब्रह्मा के किए भी आपका भला नहीं हो सकता–

सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें।
हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें॥

नाच-गान के अखाड़े में रावण के साथ बैठी मन्दोदरी के कर्णफूल जब श्री रामचन्द्र जी के एक ही बाण ने काट गिराये, तो उसी क्षण मन्दोदरी को श्री राम में ब्रह्म के दर्शन हो जाते हैं। वह रावण से हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हैं।

‘हे प्रियतम! अपना यह हठ छोड़ दीजिए कि श्री राम मनुष्य हैं। मेरे इन वचनों पर विश्वास कीजिए कि रघुकुल के शिरोमणि श्री रामचन्द्र जी विश्वरूप हैं, वेद जिनके अंग-अंग में लोकों की कल्पना करते हैं।’ श्री राम के परब्रह्मरूप का वर्णन करते हुए वह कहती हैं–

बिस्वरूप रघुबंस मनि
करहु बचन बिस्वासु।
लोक कल्पना बेद कर
अंग अंग प्रति जासु॥

अहंकार सिव बुद्धि अज
मन ससि चित्त महान।
मनुज बास सचराचर
रूप राम भगवान॥

रावण ने मन्दोदरी के बचनों को हँसकर टाल दिया। इससे विदुषी मन्दोदरी को यह विश्वास हो गया कि पति कालवश हैं।

(गुरुदेव श्री आचार्य अनिल वत्स जी की सोशल मीडिया पोस्ट)

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