Sweet Memories: कुछ धुंधली पड़ी भूली बिसरी यादें जो अभी भी मुझे गुदगुदाती हैं, प्रफुल्लित करती हैं।
हम सारे भाई बहन होली करीब आते ही उल्लसित रहते थे क्योंकि पूरे एक साल पर हमलोगों को नए कपड़े खरीदे जाते थे। वो भी अपने मन पसंद के।बीच में मां कभी कभी फ्रॉक वगैरह सिल कर पहनाती रहती थीं but होली में तो तय था नए कपड़े आने ही आने हैं सबके लिए ।
पापा रेलवे में राजभाषा अधिकारी थे लेकिन हम 6 भाई बहन थे इसलिए पैसों की थोड़ी कमी बनी रहती थी हाँ माँ पापा ने कभी पढ़ाई लिखाई या खाने पीने में कभी कोई कमी नही की। मां सभी को 500 रुपये दे देती थीं और बनारस के गोदौलिया मार्किट से खरीदारी होती थी।
होली आने से पहले पिचकारी रंग गुलाल सब भैया ले कर आते थे। हम सारे बड़े जोश में होते थे। मां तरह तरह के पकवान बनाती जो आता उसे हम बड़े प्यार से खिलाते खूब जोश में होली खेलते बीच बीच में माँ की किचेन में हेल्प भी करते। जब थक जाते तो रंगे-पुते घर की कमरतोड़ सफाई होती पूरे उमंग उत्साह के साथ ।
फिर हम अपने रंग छुड़ा कर नहाते वो भी एक बड़ा टॉस्क होता था किसका रंग सबसे ज्यादा छूटा। फिर सब साथ में खाना खाते बड़े मज़े से। और फिर से एक बार शाम की तैयारी सब मिलने आने लगते थे और वो पूरा दिन बहुत ही थकन वाला किन्तु जोश से भरा हुआ बीतता।
अब हम तरसते हैं अपने बीते हुए दिनों के लिए बस यादें ही तो बन कर रह गयी हैं कमी थी लेकिन अथाह खुशियाँ भी थीं ।वैसा उमंग उत्साह जोश अब क्यू नही है पैसों की कमी नहीँ but वो पुराने दिन की जगह नही ले सकते। वो उत्साह उमंग नहीं भर सकते । दिखावों की दीवार नहीं थी। जो भी था उसमे एक प्यार एक अपनापन था सब दिल से मिलते थे दिल से हँसते थे।
आज जाने क्यू अपना बचपन बहुत याद आ रहा है। अब सब बदल सा गया है।….हमारे सभी दोस्तों को होली की ढेर सारी शुभकामनाए गुज़ारिश है ये त्यौहार पूरे जोश उमंग उत्साह के साथ दिल से मनाएं । मार्च का महीना आते-आते बस वो पुराने दिन यादों में दस्तक देने लगते हैं.
(प्रीति सक्सेना)