AI को लेकर अकादमिक दुनिया में फिलॉसफी हावी हो गई है, लेकिन असली सवाल ये है – वो कर क्या सकता है?..
पिछले कुछ वर्षों में AI को लेकर अकादमिक जगत में बहुत दर्शनशास्त्र घुल गया है — जैसे, “क्या AI सच में सोच सकता है?”, “क्या वह तर्क करता है या सिर्फ दिखावा है?” लेकिन ये सवाल आज की असली चिंता नहीं हैं। असली मुद्दा यह है कि AI क्या कर सकता है — और वह लगातार बेहतर होता जा रहा है।
2023 में सोच का भ्रम
2023 में यह तर्क आम था कि AI सिर्फ सतही नक़ल करता है, “stochastic parrots” यानी यादृच्छिक तोते की तरह बड़बड़ाता है, असली सोच नहीं करता। उस समय यह भी सच था — AI कई बार मामूली तर्क संबंधी कार्यों में विफल हो जाता था।
लेकिन अब 2025 है। फिर भी कई शिक्षाविद और दार्शनिक इसी पुराने तर्क को दोहराते हैं कि AI अब भी “विचारशील” नहीं है। हाल ही में Apple के एक पेपर ने यही दावा किया कि मौजूदा AI मॉडल सोचने की क्षमता में सीमित हैं। इस पर खूब चर्चा हुई, वीडियो बने, और आम लोगों तक यह धारणा पहुँच गई कि “AI असली सोच नहीं करता, इसलिए डरने की जरूरत नहीं है।”
असल में क्या दिक्कत है?
Apple पेपर के निष्कर्ष इस पर आधारित थे कि AI एक खास तरह के जटिल तर्क वाले कामों (जैसे planning tasks) में बुरी तरह फेल हो गया। लेकिन अगर आप उसी सवाल को अलग ढंग से पूछें — जैसे प्रोग्राम लिखने को कहें — तो AI आसानी से हल दे देता है। दिक्कत सोच की नहीं, बल्कि सवाल पूछने के तरीके की थी।
मानो कोई कहे कि इंसान “सामान्य रूप से” गुणा नहीं कर सकते क्योंकि 10 अंकों की संख्या का गुणा हम दिमाग़ में नहीं कर सकते। इसका मतलब ये नहीं कि हम तर्क नहीं कर सकते, बल्कि बस इतना है कि हमारा दिमाग़ इतनी बड़ी गणनाओं के लिए बना नहीं है।
AI आपकी नौकरी ले सकता है, भले ही ‘वास्तविक सोच’ न कर पाए
विशेषज्ञों का मानना है कि शायद कुछ वर्षों में AI उनका काम ले लेगा। अभी वह खुद हर सप्ताह यह परीक्षण करते हैं कि AI कितना अच्छा लेख लिख सकता है — और वह लगातार बेहतर होता जा रहा है।
कानून, पत्रकारिता, तकनीकी लेखन जैसे कई क्षेत्रों में शुरुआती स्तर की नौकरियाँ AI द्वारा स्वचालित (automate) की जा सकती हैं, और हो भी रही हैं। नई नौकरियाँ शायद बनेंगी, लेकिन उसके लिए लोगों को अपनी सारी स्किल्स छोड़कर नई चीज़ें सीखनी होंगी।
इसलिए जब कोई कहता है कि AI “सिर्फ नकलची तोता” है, तो यह एक भावनात्मक सुकून जरूर देता है — जैसे कि हमारी नौकरियाँ सुरक्षित हैं। लेकिन हकीकत में, सवाल यह नहीं है कि AI “सच में सोच सकता है या नहीं”, बल्कि यह है कि वह काम कर सकता है या नहीं — और उत्तर है, हाँ, बहुत सारा काम।
AI की आलोचना में पिछड़ते जा रहे हैं आलोचक
AI के आलोचक अभी भी 2023 की कमज़ोरियों की बात कर रहे हैं, जबकि 2025 में AI बहुत आगे निकल चुका है। कुछ शिक्षाविद इसे पसंद नहीं करते, इसलिए वे इसके विकास को नजरअंदाज कर रहे हैं — और इसीलिए उनकी आलोचना अब प्रासंगिक नहीं लगती।
AI के वैश्विक प्रभाव, नौकरियों पर असर, और संभावित जोखिमों को समझने के लिए हमें अब यह नहीं देखना चाहिए कि AI कितनी गलतियाँ कर सकता है, बल्कि यह देखना चाहिए कि वह सही तरीके से इस्तेमाल किए जाने पर क्या-क्या कर सकता है।
कुल मिला कर कहा जा सकता है कि
AI आपकी नौकरी छीन सकता है, भले ही वह पूरी तरह “सोच” न पाता हो। और अगर हम सिर्फ इसकी कमजोरियों पर ध्यान देंगे, तो हो सकता है हम उस बदलाव के लिए तैयार न हो पाएं जो हमारे दरवाज़े पर दस्तक दे चुका है। हमें अपनी ताकत को ध्यान में रख कर आगे बढ़ना होगा..
(प्रस्तुति – त्रिपाठी सुमन पारिजात)