Wednesday, January 22, 2025
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शून्य भी कुछ कहता है -देखिये ‘निल बटे सन्नाटा’

 देखिये ‘निल बटे सन्नाटा’-हर सन्नाटा कुछ कहता है !

‘ न हो कुछ भी
सिर्फ़ सपना हो
तो भी हो सकती है शुरुआत
और यह एक शुरुआत ही तो है
कि वहाँ एक सपना है…’ – वेणुगोपाल –
_________
अश्विनी अय्यर तिवारी के निर्देशन में आई ‘निल बटे सन्नाटा’ देखते …महसूसते …और समझते हुए… कवि वेणुगोपाल की यही पँक्तियाँ मन में बारहा गूँजती हैं …कि वहाँ एक सपना है…और इस सपने के पीछे उम्मीद औ’ भरोसे की एक जलती हुई लौ है…
जो ज़िंदगी …क़िस्मत …और मायूसी के अँधेरे गुँजलक को सुलझाती हुई …’नील बटे सन्नाटा’ का मानी एक ‘सआदत’ में बदल कर रख देती है…

‘नील बटे सन्नाटा’ की शुरुआत जिस पेचो-ख़म और एक दिलचस्प बहस से होती है…उसकी तह में वही सपने…ख़्वाब…उम्मीद …इंतज़ार …संघर्ष …और ज़िंदगी को जीतने की एक रोशन ज़िद है…जिसे कामवाली बाई ‘चंदा सहाय ( स्वरा भास्कर ) उतनी ही शिद्दत औ’ ज़ुनून से पूरा करती है …जितनी नादानी और गफ़लत में ‘अपेक्षा यानी अप्पू’ (रिया शुक्ला) उससे विद्रोह …और फ़साद करती है…

चुनांचे, साल 2013 में आई फ़िल्म ‘ लिसन अमाया ‘ में स्वरा भास्कर ने खुद एक ऐसी
बेटी का क़िरदार अदा किया था…जो अपनी माँ की दूसरी शादी करने के ख़्याल से ही विद्रोही …और फ़सादी हो जाती है…

‘नील बटे सन्नाटा’ में आज वो खुद एक ऐसी माँ के क़िरदार में आकर चौंकाती हैं …जिसकी सोलह साला बेटी मुँहफट …बदतमीज़…फ़सादी…और गणित जैसे सब्जेक्ट में ‘नील बटे सन्नाटा’ है यानी ज़ीरो बटा शून्य…!

…लेकिन ज़िंदगी और ज़िंदगी के कच्चे रास्ते पर साथ चलती परछाईयाँ …और उसका नीम सच ‘नील बटे सन्नाटा’ नहीं है…और इसी अहसास के साथ ‘चंदा सहाय’ जब खुद अपनी बेटी ‘अप्पू’ के मुक़ाबले में खड़ी होती है…तो उसे उस रूप में देखकर चचा ग़ालिब का एक मानीख़ेज शे’र याद हो आता है :
‘ अपनी ही हस्ती से हो जो कुछ हो
आगही गर नहीं गफ़लत ही सही ‘
और बेशक…माँ-बेटी के रिश्तों की बुनावट के भीतर से सामाजिक संदर्भों को देखने की एक पैनी नज़र इस फ़िल्म के craft की एक ऐसी विशेषता है …जो भारतीय पनोरमा की सेल्यूलाइड चैप्टर की हदबंदियों को तोड़ता है…और अच्छी बात यह है कि यह फ़िल्म…फ़िल्म की तरह है…यथार्थ और कला की एक तनी हुई प्रत्यंचा पर सधी तान की तरह …जो न वक्र है …न द्रुत…!

‘नील बटे सन्नाटा’ में स्वरा भास्कर ने अपने वास्तविक अभिनय – जैसे फीके से कपड़े …बिखरे बाल…मलिन चेहरा …और बेढंगी-सी चाल से सिद्ध कर दिया है कि ‘कंटेंट बेस्ड’ फ़िल्म चलाने का वह भरपूर माद्दा रखती हैं और इसके लिए उन्हें कोई बड़ी नामचीन स्टारकास्ट की ज़रुरत नहीं है…

सुप्रसिद्ध दिग्दर्शक रतन थिय्याम बिल्कुल सही कहते हैं कि
‘ अभिनय महज़ चारित्रिक-विलास नहीं है…वह ज़िम्मेदारी भी है…’
स्वरा भास्कर…रिया शुक्ला…रत्ना पाठक …
और पंकज त्रिपाठी ने अपने जिन क़िरदारों के सच को ‘नील बटे सन्नाटा’ में जिया है…वह सचमुच एक ज़िम्मेदारी भी है…जिसका एक रास्ता-छोटा-सा-एक संकरी-सी पगडंडी बनकर एक जटिल सामाजिक निर्मिति की ओर भी जाती है…

•(Rahul Jha)

 

 

 

 

 

 

 

Anju Dokania
Anju Dokania
Anju Dokania, from Kathmandu, Nepal, is a seasoned writer and presenter with extensive experience in journalism. Currently, she serves as the Executive Editor at Radio Hindustan and News Hindu Global, leveraging her expertise to deliver impactful and insightful content.

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