Learn Sanskrit: नेताजी सुभाष बोस स्मृति अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्भाषण शिविर का उद्घाटन समारोह अत्यंत गरिमामय ढंग से सम्पन्न हुआ.
पटना, 12 फरवरी 2025: संस्कृत भाषा और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु “सर्वत्र संस्कृतम्” एवं “विहार संस्कृत संजीवन समाज, पटना” द्वारा आयोजित “आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान” के अंतर्गत “भारत महानायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस स्मृति अंतर्राष्ट्रीय दशदिवसात्मक संस्कृत सम्भाषण शिविर” का उद्घाटन समारोह अत्यंत गरिमामय ढंग से सम्पन्न हुआ। इस शिविर का उद्देश्य नेताजी के जीवन, उनके विचारों और उनकी देशभक्ति को संस्कृत के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाना है।
कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएँ
अध्यक्षीय उद्बोधन
कार्यक्रम के अध्यक्ष, डॉ. मुकेश कुमार ओझा, जो संस्कृत-विभागाध्यक्ष, फिरोज गाँधी महाविद्यालय, पाटलिपुत्र, राष्ट्रीय अध्यक्ष,आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान तथा विहार संस्कृत संजीवन समाज के महासचिव हैं, ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा, “नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जीवन राष्ट्र के प्रति त्याग, समर्पण और अदम्य साहस का प्रतीक है। आज जब हम उनके विचारों को याद कर रहे हैं, तो संस्कृत भाषा के माध्यम से उनके आदर्शों को युवाओं तक पहुँचाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है। संस्कृत ही वह माध्यम है, जो हमारी संस्कृति और हमारे नायकों की विरासत को अक्षुण्ण रख सकती है।”
उद्घाटनकर्ता का संदेश
उत्तर प्रदेश के गृह विभाग के पूर्व सचिव और “आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान” के प्रधान संरक्षक डॉ. अनिल कुमार सिंह ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा, “नेताजी सुभाष चन्द्र बोस केवल भारत के महानायक नहीं थे, बल्कि उनकी दृष्टि अंतरराष्ट्रीय थी। उनके ‘जय हिंद’ और ‘दिल्ली चलो’ जैसे नारों ने हर भारतीय को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। हमें उनके विचारों और उनके आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न को संस्कृत सम्भाषण के माध्यम से वैश्विक स्तर तक पहुँचाना चाहिए।”
मुख्य अतिथि का वक्तव्य
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, डॉ. समीर कुमार शर्मा, कुलसचिव, नालंदा खुला विश्वविद्यालय, बिहार, ने नेताजी के विचारों को आत्मसात करते हुए कहा, “संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति का आधार है। नेताजी ने जिस स्वराज की बात की थी, उसमें आत्मनिर्भरता और भारतीयता का गहरा प्रभाव था। संस्कृत के प्रचार-प्रसार से हम उनके विचारों को नई पीढ़ी तक ले जाने में सफल होंगे।”
विशिष्ट अतिथि का उद्बोधन
विशिष्ट अतिथि डॉ. अनिल कुमार चौबे, जो वरिष्ठ संस्कृत प्रचारक और संरक्षक हैं, ने कहा, “नेताजी का जीवन हमें सिखाता है कि संकल्प और निष्ठा से कुछ भी असंभव नहीं है। संस्कृत के माध्यम से उनके विचारों को जीवंत बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। यह भाषा हमारी सांस्कृतिक जड़ों को सशक्त करती है और उनके देशभक्ति के संदेश को जन-जन तक पहुँचाने का माध्यम बन सकती है।”
मुख्य वक्ता का विचार
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता शैलेन्द्र कुमार सिन्हा, जो वरिष्ठ संस्कृत प्रचारक और अभियान के संरक्षक हैं, ने अपने ओजस्वी भाषण में कहा, “नेताजी का व्यक्तित्व और उनके विचार केवल भारत तक सीमित नहीं थे। वह पूरी मानवता के लिए प्रेरणा हैं। संस्कृत, जो विश्व की सबसे प्राचीन और वैज्ञानिक भाषा है, नेताजी के विचारों को सही रूप में प्रस्तुत करने का सर्वश्रेष्ठ साधन है।”
कार्यक्रम का स्वागत भाषण
कार्यक्रम का स्वागत भाषण डा लीना चौहान, राष्ट्रीय उपाध्यक्षा, “आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान” ने दिया। उन्होंने अपने शब्दों में कहा, “नेताजी का जीवन संघर्ष, समर्पण और विजयी संकल्प का प्रतीक है। संस्कृत के माध्यम से उनके विचारों को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए यह शिविर एक महत्वपूर्ण कदम है।” उन्होंने समारोह के अंत में धन्यवाद ज्ञापन भी प्रस्तुत किया और ऐक्य मंत्र का वाचन किया।
वैदिक मंगलाचरण से प्रारम्भि
कार्यक्रम की शुरुआत मनीष कुमार, दिल्ली सह संयोजक, “आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान” द्वारा वैदिक मंगलाचरण से हुई, जिसने पूरे वातावरण को आध्यात्मिक और प्रेरणादायक बना दिया। मंच संचालन पिंटू कुमार, राष्ट्रीय संयोजक, “आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान” एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के शोधार्थी, ने अत्यंत कुशलता और प्रभावशाली ढंग से किया।
सभी ने रखे विचार
कार्यक्रम के दौरान सभी वक्ताओं यथा डॉ अवन्तिका कुमारी, सौरभ शर्मा, सदानंद प्रसाद, डॉ महेश केवट, रम्भा कुमारी, सुजाता घोष, चन्द्रकीर्ति द्विवेदी, प्रियंका सिन्हा, मुरलीधर शुक्ल, नेहा भारती, उमेश कुमार आदि ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के विचारों को केंद्र में रखते हुए उनके जीवन से प्रेरणा लेने की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने नेताजी के अदम्य साहस, देशभक्ति और युवाओं को प्रेरित करने वाले उनके संदेशों पर चर्चा की। वक्ताओं ने कहा कि संस्कृत के माध्यम से नेताजी के आदर्शों को विश्व स्तर पर प्रचारित किया जा सकता है।
यह दशदिवसीय शिविर 21 फरवरी 2025 तक चलेगा, जिसमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के विद्वान व प्रतिभागी संस्कृत सम्भाषण के माध्यम से नेताजी के विचारों और भारतीय संस्कृति पर चर्चा करेंगे। शिविर में संस्कृत व्याकरण, सम्भाषण कौशल और भारतीय दर्शन पर विशेष सत्र आयोजित किए जाएँगे।
यह शिविर न केवल संस्कृत के प्रचार-प्रसार में मील का पत्थर साबित होगा, बल्कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के विचारों को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का एक सशक्त माध्यम भी बनेगा। यह आयोजन संस्कृत भाषा और भारतीय संस्कृति को एक नई ऊर्जा प्रदान करेगा और नेताजी के सपनों के भारत के निर्माण में योगदान देगा।
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