RSS: भारत में कोई भी बड़ा आंदोलन बिना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन के सफल नहीं हो सकता.. जी हां, इस सत्य को स्वीकार किया है समय ने ! ..
संघ 100वें साल में है, जबकि इसका 75 साल का सफर मुश्किलों से भरा रहा, फिर भी यह सफल और मजबूत हुआ, यह सवाल वाकई महत्वपूर्ण है कि यह कैसे संभव हुआ?
मैं इस बात से सहमत हूँ कि हर सफल जन आंदोलन के पीछे संघ की भूमिका रही है। यह उन लोगों को परेशान कर सकता है जो बिना कारण संघ से नफरत करते हैं या हिंदुत्व का कोई दूसरा रास्ता चाहते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि संघ जैसी सफलता कोई और हासिल नहीं कर पाया।
मैं असफल हुए कुछ दक्षिणपंथी (RW) आंदोलनों की बात करूँगा। हाल ही में धीरेंद्र शास्त्री (बागेश्वर बाबा) ने अपनी पैन-इंडिया सनातन यात्रा शुरू की। हिंदी बेल्ट में उनकी लोकप्रियता बहुत है, फिर भी उनकी यात्रा असफल रही। उन्होंने खुद माना कि हिंदुओं ने उनका साथ नहीं दिया। वो कहते हैं कि हिंदू गहरी नींद में हैं।
इससे पहले, सदगुरु ने ‘रैली फॉर रिवर’ और ‘सेव सॉइल’ जैसे आंदोलन चलाए। ये कुछ हद तक सफल रहे, लेकिन इनमें वो जोश नहीं दिखा। ‘सेव सॉइल’ में किसानों की भागीदारी जरूरी थी, लेकिन कृषि-प्रधान राज्यों में उनकी कमी खली। सद्गुरु की अपील मुख्य रूप से उच्च मध्यम वर्ग तक सीमित रही, खासकर तमिलनाडु के बाहर। गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लिए उनकी संस्था (Isha) सुलभ नहीं है, और वो अपने पुराने समर्थकों को खोना नहीं चाहते।
इसी तरह, स्वामी रामदेव ने ‘स्वदेशी जागरण’ और ‘भारत स्वाभिमान’ जैसे आंदोलन शुरू किए। लेकिन इनका दमन हुआ, और एक महीने में ही उनकी ताकत खत्म हो गई। उनकी छवि को भी नुकसान हुआ। बॉलीवुड बॉयकॉट या भारत-पाक मैच बॉयकॉट जैसे आंदोलन भी असफल रहे।
लेकिन राम जन्मभूमि आंदोलन हो या राम मंदिर के लिए दान, संघ कभी असफल नहीं हुआ। इसका कारण है उनकी अनुशासित कार्यशैली, निस्वार्थ समर्पण और सामाजिक माहौल को समझने की कला।
रोचक बात यह है कि कई पुराने स्वयंसेवक, जो दशकों तक संघ से जुड़े रहे, जब उन्होंने अपनी अलग राह चुनी, तो उनकी छोटी-सी कोशिशें भी असफल रहीं। ऐसा इसलिए, क्योंकि वो पूरी तरह ‘संघी’ नहीं थे। जो 20-30 साल बिताने के बाद भी संघ की भावना की उनमें कमी थी, वही उनकी असफलता का कारण बनी।
भारत में आंदोलन आसानी से असफल हो जाते हैं। बुद्ध, लाल-बाल-पाल, विवेकानंद, सावरकर, बोस, यहाँ तक कि गांधी भी पूरी तरह सफल नहीं हुए। लेकिन संघ ने 75 साल की कठिनाइयों के बावजूद हमेशा जीत हासिल की। ऐसा क्यों?
क्योंकि संघ हार नहीं मानता। इस्लाम की तरह, संघ भी मानता है कि जब तक लक्ष्य पूरा न हो, काम खत्म नहीं होता।
संघ ने भारत में कट्टर संगठनों, अपराधियों, नौकरशाही और सरकारों के दमन का सामना किया। उन्होंने अपनी रणनीति बदली, जरूरत पड़ी तो चुपके से काम किया (जिसे आलोचक कायरता कहते हैं), और यही उनकी सफलता का राज रहा। उनकी सफलता रातोंरात नहीं, बल्कि लंबे समय के प्रयासों का नतीजा है।
संघ के हर कार्यकर्ता में धैर्य, अनुशासन और आशावाद भरा जाता है। लोग कहते हैं कि संघ को समझने के लिए शाखा में जाना पड़ता है, लेकिन देश में बहुतों ने बिना शाखा गए ये सब देखा और समझा।
संघे शक्तिः युगे युगे!
(अज्ञात वीर)