Sunday, December 14, 2025
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Vande Mataram पर पब्लिक ने कहा ‘भारत देश में रहना होगा – तो वंदे मातरम कहना होगा!’

Vande Mataram पर भारत के लोगों का विचार - संसद से सड़क तक गूंजा एक सवाल—क्या राष्ट्रगीत गायन में परेशानी क्यों है? जनता ने तो साफ कह दिया..

Vande Mataram पर भारत के लोगों का विचार – संसद से सड़क तक गूंजा एक सवाल—क्या राष्ट्रगीत गायन में परेशानी क्यों है? जनता ने तो साफ कह दिया..

संसद में राष्ट्रगीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ को देखते हुए एक विशेष चर्चा आयोजित की गई, और इस संसदीय बहस ने देखते ही देखते पूरे देश में एक नया विवाद खड़ा कर दिया। सदन में हुई इस बहस के तुरंत बाद ही वंदे मातरम के गायन को लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों के विचार, प्रतिक्रियाएँ और सवाल लगातार सामने आने लगे। इसी क्रम में जनमानस से बातचीत कर यह समझने की कोशिश की कि आम नागरिक इस मुद्दे को किस दृष्टिकोण से देख रहे हैं।

ज्यादातर लोगों ने यह स्पष्ट कहा कि उन्हें वंदे मातरम गाने या सुनाने में कोई असहजता नहीं है, क्योंकि यह उनके बचपन से ही उनकी दिनचर्या और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा रहा है। कुछ नागरिकों का यह भी कहना था कि इस गीत पर विवाद खड़ा करने की कोशिश केवल राजनीतिक लाभ के उद्देश्य से की जा रही है। वहीं कुछ लोगों ने मज़ाकिया लहजे में कहा कि वह खुद तो वर्षों से वंदे मातरम गाते आ रहे हैं, लेकिन उनके घर के ‘भैया’ इसे और बेहतर गा लेते हैं, इसलिए उन्हें किसी तरह की समस्या कभी महसूस नहीं हुई।

“देश में रहना है तो वंदे मातरम कहना होगा”—लोकमत का स्वर

वंदे मातरम को लेकर विशाल मालवीय ने बातचीत के दौरान कहा कि किसी भी भारतीय नागरिक को वंदे मातरम कहने या गाने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। उनके अनुसार यह गीत केवल एक सांस्कृतिक रचना नहीं है, बल्कि भारत की अखंडता, एकता और राष्ट्रीय चेतना को एक सूत्र में बाँधने वाला मन्त्र है। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि विपक्षी दलों ने अपना राजनीतिक आधार कमजोर होते देख अब इस प्रकार के मुद्दों को बेवजह तूल देना शुरू कर दिया है।

विशाल के अनुसार, “जो लोग वंदे मातरम कहने का विरोध करते हैं, वे देश की जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि यह गीत हर देशवासी की पहचान का हिस्सा है।”

“भारत माता की वंदना का प्रतीक”—लोगों की आवाज़ में राष्ट्रभावना

पवन कुमार बरनवाल ने वंदे मातरम को लेकर चल रही राजनीति पर अपनी नाराज़गी व्यक्त की। उनका कहना था कि कई नेता इस गीत का असल अर्थ तक नहीं समझते। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम भारत माता की स्तुति में लिखा गया गीत है और इसकी पंक्तियों में राष्ट्रभक्ति सहज रूप से झलकती है।

उन्होंने यह भी कहा कि संघ सहित कई संगठनों में ऐसे अनेक राष्ट्रभक्ति गीत गाए जाते हैं, और वंदे मातरम उनमें प्रमुख स्थान रखता है। बातचीत के दौरान उन्होंने मुस्कुराते हुए यह भी जोड़ा कि “हमारे घर के बड़े भाई इस गीत को बहुत अच्छे ढंग से गाते हैं, इसलिए हमारे लिए यह किसी विवाद का विषय है ही नहीं।”

दूसरी ओर, उमेश चंद्र गुप्ता ने वंदे मातरम को स्वतंत्रता आंदोलन का अविभाज्य हिस्सा बताते हुए कहा कि इस गीत ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ जनजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनका आरोप था कि कांग्रेस ने वर्षों तक तुष्टिकरण की राजनीति की वजह से इस गीत को वह सम्मान नहीं दिया, जिसका यह हकदार था।

उन्होंने कहा, “यह राष्ट्र का गौरव गान है। इसे जब तक हमारी सांसें चलें, सम्मान के साथ गाया जाना चाहिए।”

“स्कूलों में जब से पढ़ना शुरू किया, तभी से वंदे मातरम गाया”-लोगों की स्मृतियों में बसा राष्ट्रगीत

राजेश कुमार गुप्ता का कहना था कि वंदे मातरम पर किसी भी दल या गुट को राजनीति नहीं करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि स्कूल दिनों में प्रतिदिन प्रार्थना के समय वे इस गीत का गायन करते थे, और यही सीख उनके जीवन भर के संस्कार का हिस्सा बन गई।

राजेश के अनुसार, “जिस गीत को गाते हुए हमें सम्मानित किया गया, उसी पर आज राजनीति करना ठीक नहीं।”

निशांत दुबे ने भी इसी भावना को आगे बढ़ाते हुए कहा कि वंदे मातरम को लेकर विवाद खड़ा करना बिलकुल अनुचित है। उन्होंने याद किया कि उनके स्कूल में यह गीत रोज़ाना प्रार्थना सभा में गाया जाता था, इसलिए इसे लेकर किसी भी प्रकार का विरोध तर्कहीन है।

उनके शब्दों में, “जो लोग इस गीत पर सवाल उठाते हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि क्या वे वास्तव में इस देश में रहना चाहते हैं। अगर भारत में रहें, तो भारत माता का सम्मान करना आवश्यक है।”

(न्यूज़ हिन्दू ग्लोबल ब्यूरो)

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