Dhurandhar: रहमान डकैत की असली कहानी: ‘धुरंधर’ में अक्षय खन्ना जिस किरदार को निभा रहे, वह वास्तविक जीवन में कितना हिंसक, कितना प्रभावशाली और कितना भयावह था?
फ़िल्म ‘धुरंधर’ में अभिनेता अक्षय खन्ना जिस रहमान डकैत का अभिनय कर रहे हैं, वह सिर्फ़ कराची के अंडरवर्ल्ड का एक नाम नहीं था, बल्कि वह पाकिस्तान के सबसे जटिल, हिंसक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली अपराधियों में से एक रहा है। फ़िल्म में दिखाया गया यह चरित्र वास्तविक जीवन के उस व्यक्ति से प्रेरित है, जिसकी कहानी अपराध, राजनीति, पुलिस अभियान और खुफ़िया गठजोड़ों की उलझी हुई परतों से भरी पड़ी है।
इस पूरे प्रकरण को समझने के लिए एक दिलचस्प घटना सामने आती है -एक वरिष्ठ पाकिस्तानी नेता, जो इस्लामाबाद से लेकर रावलपिंडी तक सत्ता गलियारों में गहरी पहुँच रखते थे, एक बार विदेश में हुई मुलाक़ात में मीडिया को बता रहे थे कि जब पुलिस अधिकारी चौधरी असलम ने रहमान को गिरफ़्तार किया था, तो तत्कालीन नेता आसिफ़ अली ज़रदारी ने साफ़ कहा था –“उसे मारो मत… किसी ग़लत काम में मत फँसाना… सारे मुक़दमे अदालत में पेश करो, एनकाउंटर मत करना।” यह बात इस अपराधी के उस राजनीतिक और प्रशासनिक प्रभाव को दर्शाती है, जिसकी पहुँच देश के उच्चतम पदों तक थी।
ल्यारी की तंग गलियों से अपराध साम्राज्य तक
अब्दुल रहमान बलोच उर्फ़ रहमान डकैत का जन्म 1976 में दाद मोहम्मद उर्फ़ दादल के घर हुआ। यह परिवार कराची के सबसे पुराने और गरीबी से जूझते क्षेत्र ल्यारी में रहता था। रहमान की मां, दादल की दूसरी पत्नी थीं। परिवार बड़ा था और रिश्तेदारों की कई शाखाएँ थीं -दादल, शेरू, बेकल और ताज मोहम्मद चार भाई माने जाते थे।
रहमान के एक रिश्तेदार ने बताया कि दादल सिर्फ अपराध में शामिल नहीं था; उसने ल्यारी में कई सामाजिक कामों में भी भूमिका निभाई -बच्चों के लिए लाइब्रेरी, महिलाओं के लिए सिलाई केंद्र, ईदगाह, बॉक्सिंग क्लब, आदि। लेकिन पुलिस और खुफिया एजेंसियों के अनुसार, दादल व उसके भाई ड्रग्स कारोबार का अहम हिस्सा थे और शेरू तो पुलिस रिकॉर्ड में कुख्यात “हिस्ट्रीशीटर” के रूप में दर्ज था।
13 साल की उम्र में अपराध की शुरुआत
कराची पुलिस के पुराने रिकॉर्ड में दर्ज है कि 6 नवंबर 1989 को, मात्र 13 वर्ष की उम्र में रहमान ने मोहम्मद बख़्श नामक व्यक्ति पर चाकू से हमला किया। कारण मामूली था -पटाखा न फोड़ने की चेतावनी। यही उसके अपराध की यात्रा का पहला कदम बना।
1992 में ड्रग्स के कारोबार को लेकर नदीम अमीन और उसके साथी नन्नू से विवाद हुआ। पुलिस के अनुसार, दोनों को रहमान और उसके साथी आरिफ़ ने गोली मारकर खत्म कर दिया। इस घटना ने रहमान को अंडरवर्ल्ड के खूँखार चेहरों में शामिल कर दिया।
परिवार में ही खून -मां की बेरहमी से हत्या
रहमान की कहानी का सबसे भयावह अध्याय 18 मई 1995 को सामने आया, जब उसने अपनी मां ख़दीजा बीबी को गोली मारकर मार डाला।
सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक़, उसे शक़ था कि उसकी मां पुलिस की मुखबिर बन चुकी हैं।
लेकिन क्षेत्र के जानकारों और सूत्रों का दावा है कि रहमान ने अपनी मां पर “चरित्र संबंधी संदेह” के चलते यह हत्या की थी -एक ऐसा पहलू जो उसकी क्रूर मानसिकता और उन्मादी हिंसा को और स्पष्ट करता है।
ड्रग्स, रंगदारी और बढ़ता वर्चस्व
पुलिस और खुफिया अधिकारियों के अनुसार, 1990 के दशक तक ल्यारी में तीन बड़े गैंग सक्रिय थे – दादल-शेरू गैंग, बाबू डकैत गैंग & हाजी लालू गिरोह
ताज मोहम्मद (रहमान का चाचा) को बाबू डकैत के गिरोह ने एक संघर्ष में मार दिया, जिसके बाद हाजी लालू ने रहमान को संरक्षण दिया। लालू का प्रभाव इतना था कि ट्रांस-ल्यारी में कोई अपराध उसकी अनुमति के बिना नहीं हो सकता था। रहमान धीरे-धीरे लालू के नेटवर्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा।
लेकिन शक्ति और लालच की दुनिया में गठजोड़ अधिक समय तक स्थायी नहीं रहते। जब रहमान को लगा कि लालू के प्रभाव में वह अपनी अलग पहचान नहीं बना पाएगा, तब वह उसके खिलाफ खड़ा हो गया।
यहीं से शुरू हुई -ल्यारी गैंगवॉर, जिसे कराची अपराध इतिहास की सबसे खूनी लड़ाइयों में गिना जाता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, वर्षों तक चलने वाले इस गैंग युद्ध में लगभग 3500 से अधिक लोग मारे गए।
राजनीति, पुलिस और अंडरवर्ल्ड का त्रिकोण
साल 2002 तक रहमान की शक्ति इतनी बढ़ चुकी थी कि ल्यारी के इलाकों में कौन चुनाव जीतेगा, कौन स्थानीय प्रतिनिधि बनेगा -इन सब पर अंतिम निर्णय वही करता था। धीरे-धीरे वह एक अपराधी से “लोगों के हितैषी” नेता की छवि गढ़ने लगा। उसने स्कूल खोले, डिस्पेंसरी बनवाई और खुद को “पीपुल्स अमन कमेटी” का सरदार कहलवाने लगा।
लेकिन एमक्यूएम ने उसके बढ़ते राजनीतिक प्रभाव को सीधी चुनौती माना और उसके पुराने दुश्मन अरशद पप्पू को समर्थन देना शुरू कर दिया। इस राजनीतिक-गैंग गठजोड़ ने रहमान को दोबारा संकट में डाल दिया और उसने बलूचिस्तान में शरण लेने का फैसला किया।
गुप्त ठिकाने पर पुलिस का धावा & ज़रदारी का फ़ोन – “एनकाउंटर मत करना!”
18 जून 2006 को चौधरी असलम की टीम ने क्वेटा के सैटेलाइट टाउन में रहमान के छिपे ठिकाने पर छापा मारा। यह वही छापा था जिसका उल्लेख ‘धुरंधर’ में भी मिलता है।
मीडिया तक पहुँची गुप्त रिपोर्ट बताती है कि इससे ठीक पहले आसिफ़ ज़रदारी ने असलम को संदेश भेजा था – “उसे अदालत में पेश करो, गोली मत मारो।” यही राजनीतिक हस्तक्षेप दिखाता है कि रहमान डकैत किस स्तर तक पहुँच चुका था।
पकड़े जाने पर रहमान ने 79 अपराध, जिनमें हत्या, लूट, अपहरण और अपनी मां का क़त्ल भी शामिल था, स्वीकार किए। लेकिन इस गिरफ्तारी को कभी औपचारिक रूप से सार्वजनिक नहीं किया गया।
अत्यधिक दौलत, 3 शादियाँ & विस्तृत साम्राज्य
सरकारी दस्तावेज़ों के अनुसार 2006 तक रहमान के पास –
34 दुकानें, 33 घर, , 12 प्लॉट, 150 एकड़ से अधिक कृषि भूमि, तथा कुछ संपत्तियाँ ईरान में भी थीं। उसकी तीन पत्नियाँ—फ़र्ज़ाना, शहनाज़ और सायरा बानो – और 13 बच्चे थे।
अंत और बदले की आग
2009 में पुलिस ने एक मुठभेड़ में रहमान डकैत को मार गिराया। इस ऑपरेशन का नेतृत्व चौधरी असलम ने किया। चौधरी असलम को भी पाँच साल बाद 2014 में एक आत्मघाती हमले में मार दिया गया -एक ऐसा चक्र जिसका अंत भी खून से ही हुआ।
रॉबिनहुड या निर्दयी अपराधी?
ल्यारी में रहने वाले कई लोग आज भी रहमान को “रॉबिनहुड” जैसा मानते हैं—एक ऐसा व्यक्ति जिसने गरीबों की सहायता की। लेकिन पुलिस, खुफिया अधिकारियों और सरकारी दस्तावेज़ों की भाषा साफ़ है – वह बीसियों हत्याओं, ड्रग्स नेटवर्क, उगाही, अपहरण, हथियारों की तस्करी और राजनीतिक ब्लैकमेलिंग में शामिल सबसे क्रूर अपराधियों में से एक था।
(प्रस्तुति -त्रिपाठी पारिजात)



