Poetry by Anil Aviral: हिन्दी दिवस पर प्रिय मातृभाषा से प्रेम पर अनिल सक्सेना ‘अविरल’ जी की कलम लिखती है एक भावपूर्ण कविता..पढ़िये आप भी..
जब थिरक उठे
मन में हिलोर
करती सी
कोई,जल तरंग…
बरबस ही
श्वेत किसी
बदरी सा
जब झूम उठे
प्रेरित ये मन
जब मृदुल मृदंग,
किसी वीणा सा
पुलकित हो जाए
मन का कण- कण
जब निश्चल
शिशु की
किलकारी सा
नृत्य करे
चंचल सा मन
जब तीव्र पिपासा
मन में लिए ,
बदरी जा पंहुचे
दूर गगन
जब मंत्रमुग्ध सा
इक चकोर
इक टक देखे
शशि की चितवन
जब बोल ना फ़ूटें
अधरों से
बस थिरके एक
बेबस कंपन
जब एकाएक
सुलझने लगें
मन में उठते
सब यक्ष प्रश्न
वात्सल्य भरी
मुस्कान लिए
माँ शारदे
आशीष जब
देती है
तब सागर की
गहन गहराई में
किसी श्वेत,
मुलायम मोती सी
इक कविता
जन्म ले लेती है
इक कविता
जन्म ले लेती है..
(अनिल अविरल)